पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५५
नेउर


हो, नगी तलवार हाथ में हो , गाय मजबूत रस्सी से सामने बँधी हो, क्या उस गाय की गरदन पर उसके हाथ उठेंगे ? कभी नहीं। कोई उसकी गरदन भले ही काट ले। वह गऊ की हत्या नहीं कर सकता। वह परित्यक्ता उसे उसी गऊ की तरह लग रही थी। जिस अवसर को वह तोन महोने से खोज रहा है, उसे पाकर आज उसकी आत्मा कांप रही है । तृष्णा किसी वन्य जन्तु की भांति अपने संस्कारों से आखेटप्रिया है, लेकिन जंजीर में बंधे-बंधे उसके नख गिर गये हैं और दाँत कमजोर हो गये हैं।

उसने रोते हुए कहा-बेटी, पेटारी को उठा ले जाओ। मैं तुम्हारी परीक्षा कर रहा था। तुम्हारा मनोरथ पूरा हो जायगा ।

चांद नदी के उस पार वृक्षों की गोद में विश्राम कर चुका था। नेउर धीरे से उठा और धसान मे स्नान करके एक और चल दिया। भभूत और तिलक से उसे घृणा हो रही थी। उसे आश्चर्य हो रहा था कि वह घर से निकला ही कैसे। थोड़े-से उपहास के भय से ! उसे अपने अन्दर एक विचित्र उल्लास का अनुभव हो रहा था, मानो वह बेड़ियों से मुक्त हो गया हो, कोई बहुत बड़ी विजय प्राप्त की हो ।

(४)

आठवें दिन नेउर अपने गांव पहुँच गया। लड़कों ने दौड़कर, उछल-कूदकर, उसकी लकड़ी उसके हाथ से छीनकर, उसका स्वागत किया।

एक लड़के ने कहा--काकी तो मर गई दादा !

नेउर के पाँव जैसे बंध गये । मुंह के दोनो कोने नीचे झुक गये। दीन विषाद आँखों में चमक उठा। कुछ बोला नहीं, कुछ पूछा भी नहीं। पलभर जैसे निस्सग खड़ा रहा, फिर बड़ी तेजी से अपनी झोपड़ी की ओर चला। बालकवृन्द भी उसके पोछे दौड़े , मगर उनको शरारत और चचलता भाग गई थी।

झोपड़ी खुली पड़ी थी। बुधिया की चारपाई जहाँ-की-तहाँ थी। उसकी चिलम और नारियल ज्यों-के-त्यो धरे हुए थे। एक कोने मे दो-चार मिट्टी और पीतल के बरतन पड़े हुए थे। लड़के बाहर ही खड़े रह गये । झोपड़ी के अन्दर कैसे जायें, वहाँ बुधिया बैठी है।

गांव में भगदड़ मच गई। नेउर दादा आ गये। झोपड़ो के द्वार पर भीड़ लग गई। प्रश्नों का तांता बंध गया-तुम इतने दिन कहाँ थे दादा ? तुम्हारे जाने के बाद