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मानसरोवर


अच्छा नहीं होता। इस निर्लज्जता की भी कोई हद है, कि बूढी सास तो खाना पकाये और जवान बहु वैठी उपन्यास पढती रहे ।

बेटा-बेशक यह बुरी बात है और मैं हर्गिज नहीं चाहता कि तुम खाना पकाओ और वह उपन्यास पढे, चाहे वह उपन्यास प्रेमचन्द हो के क्यों न हों, लेकिन यह भी तो देखना होगा कि उसने अपने घर कभी खाना नहीं पकाया । वहाँ रसोइया महाराज है। और जब चूल्हे के सामने जाने से उसके सिर में दर्द होने लगता है, तो उसे खाना पकाने के लिए मजबूर करना उस पर अत्याचार करना है । मैं तो समझता हूँ, ज्यों-ज्यों हमारे घर की दशा का उसे ज्ञान होगा, उसके व्यवहार में आप-ही-आप इसलाह होती जायगी। यह उसके घरवालों की गलती है, कि उन्होंने उसकी शादी किसी धनी घर में नहीं की। हमने भी यह शरारत की कि अपनी असली हालत उनसे छिपाई और यह प्रकट किया कि हम पुराने रईस हैं । मुँह से यह कह सकते हैं कि तू खाना पका, या बरतन मांज या झाडू लगा। हमने उन लोगों से छल किया है और उसका फल हमें चखना पड़ेगा। अब तो हमारी कुशल इसीमें है कि अपनी दुर्दशा को नम्रता, विनय और सहानुभूति से ढाँके, और उसे अपने दिल को यह तसल्ली देने का अवसर दे कि बला से धन नहीं मिला, घर के आदमी तो अच्छे मिले । अगर यह तसल्ली भी हमने उससे छीन ली, तो तुम्ही सोचो, उसको कितनी विदारक वेदना होगी । शायद वह हम लोगो की सूरत से घृणा करने लगे।

मां-उसके घरवालों को सौ दफे गरज़ थी, तब हमारे यहां व्याह किया । हम कुछ उनसे भीख माँगने गये थे ?

बेटा-उनको अगर लड़के की गरज़ थी, तो हमे धन और कन्या दोनों की गरज़ थी।

माँ-~- यहाँ के बड़े बड़े रईस हमसे नाता करने को मुँह फैलाए हुए थे।

बेटा--- इसीलिए कि हमने रईसों का स्वांग बना रखा है । घर की असली हालत खुल जाय, तो कोई बात भी न पूछे ।

माँ-तो तुम्हारे ससुरालवाले ऐसे कहाँ के रईस हैं। इधर जरा वकालत चल गई, तो रईस हो गये, नहीं तुम्हारे ससुर के बाप मेरे सामने चपरासगीरी करते थे। और लड़की का यह दिमाग्न कि खाना पकाने से सिर में दर्द होता है। अच्छे-अच्छे