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मानसरोवर

में आधा-साझा होगा। दस लाख की रकम मिलेगी । पाँच लाख मेरे हिस्से मे आयेंगे, पाँच विक्रम के । हम अपने इसी में मगन थे।

मैंने संतोष का भाव दिखाकर कहा-पाँच लाख भी कुछ कम नहीं होते जी !

विक्रम इतना संतोषी न था । बोला-~पाँच लाख क्या, हमारे लिए तो इस वक पाँच सौ भी बहुत है भाई , मगर ज़िन्दगी का प्रोग्राम तो बदलना पड़ गया। मेरी यात्रावाली स्कीम तो टल नहीं सकती। हाँ, पुस्कालय गायव हो गया।

मैंने आपत्ति की-आखिर यात्रा में तुम दो लाख से ज्यादा तो न खर्च करोगे ?

'जी नहीं, उसका बजट है साढे तीन लाख का । सात वर्ष का प्रोग्राम है। पचास हजार रुपये साल ही तो हुए?'

'चार हज़ार महीना कहो । मैं समझता हूँ, दो हज़ार मे तुम बड़े आराम से रह सकते हो।'

विक्रम ने गर्म होकर कहा- मैं शान से रहना चाहता हूँ , भिखारियों को तरह नहीं ।

'दो हज़ार में भी तुम शान से रह सकते हो।

'जब तक आप अपने हिस्से मे से दो लाख मुझे न देंगे, पुस्तकालय न बन सकेगा।'

'कोई जरूरी नहीं कि तुम्हारा पुस्कालय शहर मे बेजोड़ हो ।'

'मैं तो बेजोड़ ही वनवाऊँगा।'

'इसका तुम्हे अख्तियार है , लेकिन मेरे रुपयों में से तुम्हे कुछ न मिल सकेगा। मेरी जरूरतें देखो। तुम्हारे घर मे काफी जायदाद है । तुम्हारे सिर कोई बोझ नहीं, मेरे सिर तो सारी गृहस्थी का बोझ है। दो बहनो का विवाह है, दो भाइयो की शिक्षा है, नया मकान बनवाना है । मैंने तो निश्चय कर लिया है कि सब रुपये सीधे बैंक में जमा कर दूंगा। उनके सूद से काम चलाऊँगा। कुछ ऐसी शर्ते लगा दूंगा, कि मेरे बाद भी कोई इस रकम मे हाथ न लगा सके ।

विक्रम ने सहानुभूति के भाव से कहा- हाँ, ऐसी दशा में तुमसे कुछ मांगना अन्याय है। खैर, मैं ही तकलीफ उठा लूंगा , लेकिन बैंक के सूद का दर तो बहुत गिर गया है।

हमने कई बैंकों के सूद का दर देखा, स्थायी कोष का भी, सेविग वैक का भी। बेशक दर बहुत कम था ।दो ढाई रुपये सैकड़े व्याज पर जमा करना व्यर्थ है । क्यों न लेन देन का कारोबार शुरू किया जाय । विक्रम भी अभी यात्रा पर न जायगा। दोनों