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नया विवाह

उसने कहा-जुगल सारी रोटियां टेढ़ी-मेढ़ी बेल डालेगा।

लालाजी ने कुछ चिढ़कर कहा-अगर रोटियां टेढो-मेढी वेलेगा, तो निकाल दिया जायगा।

आशा अनसुनी करके बोली-दस-पाँच दिन में सीख जायगा। निकालने की क्या ज़रूरत है?

'तुम आकर बतला दो, गमले कहाँ रखे जायें।'

'कहती तो हूँ, रोटियाँ बेलकर आई जाती हूँ।'

'नहीं, मैं कहता हूँ, तुम रोटियां मत वेलो।'

'आप तो खामखाह ज़िद करते हैं।'

'लालाजी सन्नाटे में आ गये। आशा ने कभी इतनी रुखाई से उन्हें जवाब न दिया था। और यह केवल रुखाई न थी । इसमे कटुता भी थी। लज्जित होकर चले गये। उन्हें ऐसा क्रोध आ रहा था कि इन गमलों को तोड़कर फेंक दें और सारे पौधों को चूल्हे में डाल दें।

जुगल ने सहमे हुए स्वर में कहा-आप चली जायँ बहूजी, सरकार बिगड़ जायेंगे

'बको मत, जल्दी-जल्दी फुलके सेंको, नहीं निकाल दिये जाओगे ! और आज मुझसे रुपये लेकर अपने लिए कपड़े बनवा लो। भिखमंगो की-सी सूरत बनाये घूमते हो । और वाल क्यों इतने बढा रखे हैं ? तुम्हे नाई भी नहीं जुड़ता।'

जुगल ने दूर की बात सोची। बोला-कपड़े बनवा लें तो दादा को हिसाब क्या दूंगा?

'अरे पागल, मैं हिसाब में नहीं देने को कहतो । मुझसे ले जाना।'

जुगल काहिलपन की हँसो हँसा ।

'आप बनवायेंगी तो अच्छे कपड़े लूंगा। खद्दर के मलमल का कुर्ता, खद्दर की धोती, रेशमी चादर, अच्छा-सा चप्पल ।'

आशा ने मीठी मुसकान से कहा-और अगर अपने दाम से बनवाने पड़े ?

'तम कपड़े ही क्यों बनवाऊँगा ?'

'बड़े चालाक हो तुम

जुगेल ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया-आदमी अपने घर में सूखी रोटियां