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मानसरोवर

'घमण्ड तो देखो कि तिथि तक बता दी । यह नहीं समझे कि अंग्रेजी सरकार का राज है । तुम डाल-डाल चलो, तो वह पात-पात चलती है।'

'समझे होंगे कि धमकी में आ जायेंगे।'

तीन कान्सटेबिलो ने आकर सन्दूकचे और सेफ निकालने शुरू किये। एक बाहर सामान को मीटर पर लाद रहा था और हरेक चीज को नोट-बुक पर टांकता जाता था। आभूषण, मुहरें, नोट, रुपये, कीमती कपड़े, साड़ियां, लहँगे, शाल-दुशाले, सब कार में रख दिये गये। मामूली बरतन, लोहे-लकड़ी के सामान, फर्श आदि के सिवा घर में और कुछ न बचा । और डाकुओं के लिए यह चीजें कौड़ी की भी नहीं । केसर का सिंगार दान खुद सेठजी लाये और हेड के हाथ में देकर बोले-इसे बड़ी हिफाज़त से रखना भाई।

हेड ने सिगार-दान लेकर कहा-मेरे लिए एक-एक तिनका इतना ही कीमती है।

सेठजो के मन मे एक सन्देह उठा। पूछा-खजाने की कुञ्जी तो मेरे ही पास रहेगी ?

और क्या, यह तो मैं पहले ही अर्ज कर चुका, मगर यह सवाल आपके दिल में क्यो पैदा हुआ ?'

'यो ही पूछा था --सेठजी लज्जित हो गये।

'नहीं, अगर आपके दिल में कुछ शुबहा हो, तो हम लोग यहाँ भी आपकी खिदमत के लिए हाजिर है । हाँ, हम जिम्मेदार न होंगे।

'अजी नहीं हेड साहब मैने यों ही पूछ लिया था। यह फिहरिस्त तो मुझे दे दोगे न?'

'फिहरिस्त आपको थाने में दारोगाजी के दस्तखत से मिलेगी। इसका क्या एतबार ।"

कार पर सारा सामान रख दिया गया। कस्बे के सैकड़ों आदमी तमाशा देख रहे थे। कार बड़ी थी ; पर ठसा ठस भरी हुई थी। बड़ी मुश्किल से सेठजी के लिए जगह निकली । चारों कान्सटेबिल आगे की सीट पर सिमटकर बैठे।

कार चली । केसर द्वार पर इस तरह खड़ी थी, मानो उसकी बेटी विदा हो रही हो । वेटी ससुराल जा रही है, जहाँ वह मालकिन बनेगी, लेकिन उसका घर सूना किये जा रही है।