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चमत्कार

चीजो को देखकर आँखें ठण्डी हो जाय। सच कहता हूँ, बाज चीजों पर तो आँख नहीं ठहरती थीं।

चम्पा ईष्याजिनित विराग से बोली-उँह, हमें क्या करना है। जिन्हे ईश्वर ने दिया है, वे पहने । यहाँ तो रो-रोकर मरने हो के लिए पैदा हुए हैं।

चन्द्रप्रकाश ---इन्ही लोगो को मौज है। न कमाना, न धमाना । बाप-दादा छोड़ गये हैं, मजे से साते और चैन करते है । इसी से कहता हूं, ईश्वर बड़ा अन्यायी है।

चम्पा-अपना अपना पुरुषार्थ है, ईश्वर का क्या दोष । तुम्हारे बाप-दादा छोङ गये होते, तो तुम भी मौज करते। यहाँ तो रोटियाँ चलना मुश्किल है, गहने-कपड़े को कौन रोये । और न इस ज़िन्दगी मे कोई ऐसी आशा ही है। कोई गत की साड़ी भी नहीं रही कि किसी भले आदमी के घर जाऊँ तो पहन लूँ। मैं तो इसी सोच मे हूँ कि ठकुराइन के यहाँ ब्याह मे कैसे जाऊँगी । सोचती हूँ, वीमार पड़ जाती तो जात बचती।

यह कहते-कहते उसको आँखें भर आई।

प्रकाश ने तसल्ली दी-साड़ी तुम्हारे लिए मैं लाऊँगा। अब क्या इतना भी न कर सकूँगा । यह मुसीबत के दिन क्या सदा बने रहेंगे ? जिन्दा रहा तो एक दिन तुम सिर से पांव तक जेवरो से लदी होगी।

चम्पा मुसकिराकर बोली-चला, ऐसी मन की मिठाई मैं नहीं खाती। निबाह होता जाय, यही बहुत है । गहनों की साध नहीं है।

प्रकाश ने चम्पा की बातें सुनकर लज्जा और दुःख से सिर झुका लिया। चम्पा उसे इतना पुरुषार्थ-हीन समझती है!

( ३ )

रात को दोनो भोजन करके लेटे, तो प्रकाश ने फिर गहनों की बात छेड़ी। गहने उसकी आँखों में बसे हुए थे-'इस शहर में ऐसे बढिया गहने बनते हैं, मुझे इसकी आशा न थी।

चम्पा ने कहा- कोई ओर बात करो। गहनों की बात सुनकर जी जलता है।

'वैसी चीज़ तुम पहनो तो रानी मालूम होने लगो।'

'गहनो से क्या सुन्दरता बढ़ जाती है ? मैंने तो ऐसी बहुत-सी औरतें देखी हैं, जो गहने पहनकर भद्दी दीखने लगती है।'