पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८५
कैदी


साथ जो दगा की है, वह शायद त्रिया-चरित्र के इतिहास मे भी अद्वितीय है। मैंने अपना सर्वस्व तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दिया। केवल तुम्हारे इशारों का गुलाम था ! तुमने ही मुझे रोमनाफ को हत्या के लिए प्रेरित किया । ओर तुमने ही मेरे विरुद्ध साक्षी दी , केवल अपनी कुटिल काम-लिप्सा को पूरा करने के लिए ! मेरे विरुद्ध कोई दूसरा प्रमाण न था। रोमनाफ और उसकी सारी पुलिस भी झूठी शहादतो से मुझे परास्त न कर सकती थी , मगर तुमने केवल अपनी वासना को तृप्त करने के लिए, केवल रोमनाफ के विषाक्क आलिगन का आनन्द उठाने के लिए मेरे साथ यह विश्वासघात किया , पर आँखें खोलकर देखो कि वही आइवन,' जिसे तुमने पर के नोचे कुचला था, आज तुम्हारी उन सारी मक्कारियों का पर्दा खोलने के लिए, तुम्हारे सामने खड़ा है । तुमने राष्ट्र की सेवा का बीड़ा उठाया था । तुम अपने का राष्ट्र की वेदी पर होम कर देना चाहती थी , किन्तु कुत्सित कामनाओं के पहले ही प्रलोभन में तुम अपने सारे बहु रूप को तिलाजलि देकर भोग-लालसा को गुलामी करने पर उत्तर गई ! अविकार और समृद्धि के पहले ही टुकड़े पर तुम दुम हिलाती हुई टूट पड़ी ! धिक्कार है तुम्हारी इस भोग-लिप्सा को , तुम्हारे इस कुत्सित जीवन को ।

(४)

सन्ध्या-काल था। पश्चिम के क्षितिज पर दिन की चिता जलकर ठढी हो रही थी और रोमनाफ के विशाल भवन मे हेलेन की अर्थी को ले चलने की तैयारियाँ हो रही थीं। नगर के नेता जमा थे और रोमनाफ अपने शोक कम्पित हाथों से अर्थी को पुप्पहारों से सजा रहा था और उन्हें अपने आत्म-जल से शीतल कर रहा था। उसी वक्त आइवन उन्मत्त वेष मे, दुर्वल, झुका हुआ, सिर के बाल चढाये कंकाल-सा आकर खड़ा हो गया। किसीने उसकी ओर ध्यान न दिया । समझे, कोई भिक्षुक होगा, जो ऐसे अवसरों पर दान के लोभ से आ जाया करते हैं।

जब नगर के विशप ने अन्तिम संस्कार समाप्त किया और मरियम को बेटियां नये जीवन के स्वागत का गीत गा चुकीं, तो आइवन ने अर्थी के पास जाकर आवेश से कांपते हुए स्वर मे कहा— यह वह दुष्टा है, जिसे सारी दुनिया की पवित्र आत्माओं की शुभ-कामनाएँ भी नरक की यातना से नहीं बचा सकती। वह इस योग्य थी कि उसकी लाश ...

कई आदसियों ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और उसे धक्के देते हुए फाटक की‌