पृष्ठ:मानसिक शक्ति.djvu/३९

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न इसके बाबत कुछ विशेषकर धर्मायतनों में ही शिक्षा दी जाती है और बहुत कम लिखा भी गया है। कुछ शताब्दियों के बाद अब यह बात फिर हमारे सम्मुख आई है। इसको कुछ मनुष्य नया समझते हैं और कुछ धर्म विरुद्ध बतलाते हैं। बात असल में यह है कि यह बात तनिक भी नई नहीं है। ईसा के पांच सौ वर्ष पहले बुद्ध भगवान ने इस बात का उपदेश दिया था और अन्य धर्म गुरुओं ने भी यह बात बतलाई थी। उनके कथन में तनिक भी आशंका नहीं हो सकती।

जो विचार हमारे मस्तक में है उसी ने हमको बनाया है। विचारों के अनुसार ही हम बनाए गए हैं। यदि मनुष्य के विचार तुच्छ और घृणित है तो उसके पीछे दुख वा क्लेश इस प्रकार लगा हुआ है जिस प्रकार बैल के पीछे पहिया लगा रहता है। परंतु यदि किसी के विचार विशुद्ध और पवित्र हैं तो सुख उसका इस प्रकार साथ देता है जिस प्रकार मनुष्य की छाया मनुष्य का साथ देती है।

जैसा तुम दूसरों से कराने की इच्छा रखते हो वैसा तुम भी उनके साथ करो क्योंकि यह एक प्राकृतिक नियम है।

जो तुम दोगे वह तुम्हें भी मिल जाएगा। यदि तुम दूसरों के साथ उपकार करोगे तो वै तुम्हारे साथ भी उपकार करेंगे।

देह के साथ मोह मृत्यु समान है और आत्मिक विचार सुख शान्ति की जड़ है।

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