हमको अपना उद्धार अपने आप करना चाहिये और उसी में सन्तोष कर लेना चाहिए। सारांश यह है कि यदि हमको यह मालूम हो जाए कि यह बात हम में पूर्व-कर्म और पूर्वविचार के कारण हुई है तो हमें उसका रत्ती रत्ती भर बदला चुका देना चाहिए परन्तु बदला चुकाते समय अपने मन को शुभ विचारों की ओर लगाना चाहिए जिससे भविष्य में हर्ष और आनन्द मिले। यदि हमारे हाथ में आज कांटा चुभे और यदि हम उसके कारण को मालूम करें तो हमें ज्ञात हो जाएगा कि हमारे इस दुख का बीज हमीं ने बोया है। चाहे इसे थोड़े दिन हुए हों या बहुत दिन; परंतु बोया हमीं ने है। कार्य कारण के नियम पर विचार करते हुए भी हमें यही समझ में आता है कि हमारे दुख का बीज अवश्य ही अतीत काल में बोया गया होगा। यदि तुम विशुद्ध-निर्मल प्रेम, प्रीति और प्रसन्नता के विचार को मन रूपी भूमि में बोओगे तो उससे तुम्हें अच्छे फल मिलेंगे और हर्ष तथा आनन्द के कारण तुम उन दुखों को भी सहन कर लोगे जिनका बदला अभी तुम्हें ्चु चुकाना बाकी है और वे दुख शनैः शनैः जाते रहेंगे।
क्या तुम अपने जीवन को सारयुक्त और सुख मय बनाने के लिए भलाई, सुन्दरता और प्रसन्नता को चाहते हो? क्या तुम ऐसे शान और शक्ति को प्राप्त करना चाहते हो जिससे तुम्हारे साथी तुम्हें विश्वासपात्र समझे और तुमसे बहुत लाभ उठा सकें? इसका तुम रात-दिन चिन्तवन करो, पवित्र और विशुद्ध विचारों की ज्योति निरन्तर तुमको घेरे रहे,
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