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मिश्रबंधु-विनोद

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१०८ मिश्रबंधु-विनोद इनकी रचनाएँ संवत् १७४६ तक पहुंची हैं। इन्होंने भक्ति और संसार की असारत्ता के अच्छे कथन किए हैं। घासीराम की कहावत बढ़ो चोखो तथा सुहावनी है और इनकी अन्योकियाँ भी अच्छी होती। इन्होंने पक्षा-विलास-नामक एक उत्कृष्ट ग्रंथ अनाया। अटमल खड़ी बोली मय का द्वितीय लेखक है। इसने गोरा-बादल की कथा-नामक अथ में उसो का प्राधान्य रक्खा है। .. भाषा सारांश यह कि सार तुलसी-काल हमारी भाषा का बड़ा ही उज्ज्वल समय हुश्रा है । जैसे अँगरेज़ी में एलीज़बेथ का समय (१६१५ से १६६०) उतभापा के लिये बड़ी उन्नति का है, वैसे ही अकबर का राजत्व-काल (१६१३-१६६२) हिंदी की वृद्धि और गौरव का जमाना हुआ है। दोनों ही देशों में इस समृद्धिशाली समय में बड़ी ही संतोषजनक उन्नति हुई और अच्छे-अच्छे कवि छ लेखक हो गए । उर्दू भाषा की अड़ भी मुख्यतया इसी समय में पड़ी। इस बृहत् काल में पहले तो ब्रजभाषा तथा पदों का विशेष चल रहा और कृष्ण कविता पर अधिक ध्यान दिया बाया, पर तुलसी-काल से रामभनि की भी धारा बही । सौरकर में समझकों ने कृष्णा की भाँति उनका भी भंग र-पूर्स वसन किया । तुलसी के साथ ब्रजभाषा का सिक्का कुछ शिथिल हुआ और अवधी भाषा में भी हिंदी में स्थान पाया, यहाँ तक कि दोहाचौपाइयों के ग्रंथों में उसी का प्राधान्य हो गया । गद्य का भी कुछकुछ प्रचार बड़ा । विट्ठलनाथ, गोकुलनाथ, गंगाभाट, बनारसीदास और बटमल इस समय के गद्य-लेखक हैं। इस काल में भाषा में "अनुप्रास, यमकादि का विशेष आदर नहीं हुआ।