पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

संक्षित इतिहास प्रकरण अकबरी दरबार के समान महाराज छत्रसाल के दरबार का भी प्रभाव इस समय कविता पर बहुत अच्छा पड़ा। वीर-कविता का प्रचार हिंदी में विशेषतया छत्रसाल और शिवाजी के कारण हूआ ! छत्रसाल की प्रशंसा हिंदी के बहुत बड़े-बड़े कवियों ने मुक्त कंठ से की भूपण-काल के कुलपति और सुखदेव मिश्र भारी प्राचार्य थे। कुलपति ने बड़ी उत्तमता से गंभीरता-पूर्वक साहित्य-रीति का दर्शन रस-रहस्य में किया । इनकी रचना भी बड़ी मनोहर, किंतु कुछ कठिन है। चै बिहारीलाल के भांजे थे । सुखदेव मिश्र पिंगलाचार्य समझे जाते हैं। ये प्रथम कवि थे, जिन्होंने पूर्ण बल से पिंगल के ही विषय का वर्णन किया। इनके अन्य वर्णन भी अच्छे थे। इन दोनों कवियों की रचना बड़ी ही टकसाली होनी थी ! कालिदास भी इस समय के एक परम प्रसिद्ध ऋवि थे । अन्य विशद प्रबंधों के साथ ३९२ कवियों की रचनाओं का हज़ारा नामक इन्होंने एक संग्रह भी बनाया, जिससे उन प्राचीन कवियों के नाम एवं यश स्थिर रहने में बड़ा सहारा मिला। इस प्रकार भविष्य इतिहासरचयिताशा को कालिदास ने बड़ी सहायता दी। ये प्रसिद्ध कवि कबोंद्र के पिता और दुलह के बाबा थे। इनके छंद मी मनोहर होते धे । रामसी भी एक चमत्कारी कवि थे । हरश (१७३२) भूषण की भाँति इस समय का एक बड़ा ही उद्दड कवि हो गया है। इसके बहुत छंद नहीं मिलते, पर जितनी कविता इसकी मिली है वह बड़ी ही चमत्कारिक है। इनका एक में खोज में लिखा है। इसने वीप्रधान कविता की है । घनश्याम के केवल फुट कवित्त मिले हैं, पर उनमें अद्भुत जोर देत पड़ता है । इस समय के कवियों में यह कुछ विशेषता-सी है कि उनको रचना में प्राबल्य की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। घनश्याम ने