पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

की दृष्टि से न्यून या,तो भी अच्छे कवि इस समय में भी बहुत थे । राजा शिवप्रसाद के साथ गद्य-विभाग ने कुछ उन्नति प्रारंभ की । अनुप्रास का सिधा अब भाषा-काव्य पर पूर्ण रूप से जम गया था और कवि भाव पर उतना ध्यान नहीं देते थे जितना कि भाषा पर।

          दयानंद-काल
स्वामी दयानंद के समय (१६१६-१६२५) में  राजा लक्ष्मणसिंह,शंकर दरियाबादी,गदाधर भट्ट,फेरन,मुरारिदान,औध,लछिराम,बलदेव व लखनेस अच्छे कवि थे । स्वामी ने आर्य- सामाज स्थापित करके हिंदू-धर्म में अपने विचारों के अनुसार संशोधन किया । इन्होंने गंभीर गवेषणा-पूर्ण कई उत्तम धार्मिक ग्रंथ खड़ी बोली गद्य मे लिखे और अपने समाज का यह एक मुख्य नियम कर दिया कि प्रत्येक सदस्य हिंदी की सहायता करे । स्वामी द्वारा हिंदी का भारी उपरकार हुआ है। राजा लक्ष्मणसिंह ने ब्रजभाषा पद्य और खड़ी बोली गद्य के अनुवाद-ग्रंथ रचे । इन्होंने खिचड़ी हिंदी को हटाकर विशुद्ध खड़ी बोली का मान बढ़ाया । शंकर ने प्राचीन प्रथा की अच्छी कविता की गदाधर भट्ट पद्माकर के पौत्र और बढ़िया कवि थे । इनके भाव मनोहर एवं भाषा मधुर हैं । औधजी इस समय के उत्कृष्ट कवि हुए हैं तथा लछिराम एवं द्विज बलदेव भी प्रशंसित और विख्यात कवि हैं। लखनेश ने कृष्णचरित्र अच्छा कहा । डॉ० रुडाल्छ हार्नली ने गौढ़ भराओं का व्याकरण अँगरेज़ी में लिखकर हिंदी का भी उपकार किया है।           
            विचार

इस परिवर्तनकाल मे प्राचिन प्रथा के बहुत से कवि हुए,परंतु नवीन प्रणाली की भी जढ़ पढ़ने लगी और गद्य-विभाग का बल बढ़ने लगा । गद्य में अब ब्रजभाषा का चलन बिल्कुल उठ गया और खड़ी बोली का प्रचार बढ़ा । लल्लूजीलाल में शिक्षा-विभाग के