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मिश्रबंधु-विनोद

असंभव कथन न हो, तो बहुत अच्छा था बालमुकुंद गुरु ने ज़ोरदार एवं हास्य-रसपूर्ण लेखों द्वारा हिंदी को सुशोभित किया। अयोध्या सिंह उपाध्याय ने कई प्रकार की भाषा लिखने में अच्छी सफलता पाई है। ठाकुर गदाधरसिंह का स्वतंत्रतायुक्त अनूठापन, मुरारिदान की अचार्यता और मथुराप्रसाद के कथा-प्रासंगिक वर्णन भी दर्शनीय हैं। ब्रजनंदनप्रसाद ने विविध विषयों के अनेकानेक प्रशस्त ग्रंथ लिखकर गध-काव्य का भंडार ख़ूब भरा है, एवं नाटक की ओर भी ध्यान दिया है। गंगाप्रसाद अग्निहोत्री ने अन्य भाषाओं के कई उत्तम ग्रंथों के अनुवाद विशुद्ध हिंदी में किए हैं। श्यामसुंदरदास हिंदी के उपकारी और एक बड़े ही श्रमशील लेखक हैं। इनके परिश्रम से भाषा का अच्छा उपकार हुआ है और यह उसका एक वृहत् कोष संपादित कर रहे हैं। मघन द्विवेदी सुलेखक थे। मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के एक प्रसिद्ध कवि हैं। लोचनप्रसाद देशोपकारी लेख अच्छे लिखते हैं। जैन वैद्य, और माणिक्यचंद्र जैन का हिंदी-उत्साह अत्यंत सराहनीय था। प्यारेलाल मिश्र, काशीप्रसाद जैसवाल,सत्य-देव और महेशचरणसिंह द्वारा बाहरी बातों का ज्ञान हिंदी-रसिको को हुआ और होने की आशा हैं। इस समय में समाचार पत्रों की भी अच्छी उन्नति हुई और माधुरी, सरस्वती, मर्यादा*[१], स्त्री-दर्पण, भारतमित्र, वंगवासी, चित्रमयजगत्, आजवर्तमान, स्वतंत्र विश्‍वमित्र, हिंदू-संसार, सूर्य, गृहलक्ष्मी, बालसखा, मतवाला, वैंकटेश्‍वर-समाचार, अभ्युदय, प्रताप, मनोरमा,साहित्य-समालोचक इत्यादि अनेक पत्रिकाएँ और पत्र हिंदी की शोभा बढ़ा रहे हैं। कई एक सभाएँ भी स्थापित हो चुकी हैं, जिनमें काशी-नागरीप्रचारिणी सभा और हिंदी-साहित्य सम्मेलन प्रधान हैं । धारा एवं प्रयाग को सभाएँ भी अच्छे काम कर रही हैं। छापेख़ाने में भी अब उन्नति कर ली है और *खेद है कि अब यह पत्रिका बंद हो गई है।


  1. *खेद है कि अब यह पत्रिका बंद हो गई हैं।