पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२०५

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संक्षिप्त इतिहास-प्रकरङ ३६१ ६ ६ } उनलंकृत हिंदः । १७६१-१८८१ } कई रूचिः ॐ ॐ हूँ कन्ह बमैं करी दिये था दादा हरे का अभद्र र ३ झव के ऊछु झूम #त्र छम छ । भैन । । । कुकर भॐि कार दैटि द्धा बंद, बैंइड है। अनि नरम सञ्चास हैं, आज अधुर युवा कंदै ।। होत आशिन दे नाल , सरस सलिल ६ । । । नु लिङ्क लै, अयू केंद्र बाइ राखै, रसद की रङ्ग ३, ४ रहै इन ॐ । छोर करे ॐ ॐ, झः ऋ ए हैं, म्यार के कई बहुरूपी रणद को । प्रशन्न बैंधा नै, कुल लेकैथ लै, . हा कडू न अर. ॐ एरै हैन, ढाई साढ़ें प्रजनन् , जी सुश्टन ॐ ३ । चचा अंदच्छनछ । १०} सुंदरकार के इ मुरलीधर बेड़ छ४ि श्रीराधा : बार थप अनंत बरि सद्ध ऊ म ॐ साधा