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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-चिचोद की हैं। इन्हीं तीन ऋवि ने अवता इस समय को भंगार हैं। जायसी और कृपाराम न ऐसे भन्न थे और न बड़े रसिया हुई अँ, ऋदः उन ऋदितः उस दूजे को पहुंचीं ! कृपाराम ने ११९८४ तितरंगिन द्धन्दाई र ज्ञायसी ३ १३१५ से १६०० नक पद्मावत की रचना की । सूरदासजी के कुछ ही पछि अर्थात् संवत् १६०० के खरा- । सैकड़ों भक्तजनों ने उत्तम झनों में झुण्यशगान किया । श्री स्कर्म बिंटलनाथजी ने चंदनाभीय संप्रदाय के कवियों में अड़ उकृष्ट ऋदि देकर उनकी बयाना अष्टछाप में की । उनमें से प्रधान श्री. . रदास थे । कन्हा पड़ेगा कि शेष सात अत्रियों की रचना अनोहर होने पर भी सर कविता से किसी अंश में भी समानतः झीं कर सकती । उपर्युक्ल वर्शन से प्रकट है कि वैष्मवता को इमारीः चिता पर भारी प्रभाव पड़ा है। अतः अधिक स्पष्टीकरण के बिचार ॐ सूक्ष्मतया उसका भी कुछ हान्द यहाँ लिखा जाता है । . कैद-नत में चार प्रधान शाखाएँ हैं, जो माध्व, विषम्यु, निंयार्क र. मानुज-नाम से प्रसिद्ध हैं । इन चार प्रदा में राम और ऋष्को की उपशाखाएँ हैं, जिनमें मुख्यतथा इन्हीं अवतारों की बा- सन्दा होती हैं । मध्व संप्रदाय में नसण की प्रधान उपसिना है। चैतन्य महाप्रभु इसी संप्रदाय में थे । इन्होंने श्रीकृष्णचंद की भक्रि को प्रधानता दी और नाम-झर्तन के मुख्य माना है ये महाप्रभुजी महाप्रभु. चलभाचार्य के सहपाठी थे। ये दोन महाशय भारी विद्वान् ॐ और ऋछुए के अवतार समझे जाते हैं । ये उनके अटल भक्त ३। चैतम्झ महाप्रभु वृंदावन को भी सुक बार गए थे, पर विशेषता दस्थ और माथपुरी में रहे ? ये ऐसे महान् प्रेमी ४ कि भन्ने ॐ उमंग में मरे ॐ भूरू जादै थे। इसी प्रकार एक बार अपे की भूल हुई छ में ये दौड़कर समुद्र में डूब उरए श्रीर ऐसे इं। इक सिंछ हुआ है इनको संश्दा माध्य के अंतर्गत गौड़ीय