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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रचं-दिनद इन्होंने गोवर्द्धन के पास कदेड का हुक उपवन लगाया , ॐ श्रः तक वर्तमान है और गोविंदस्वामी की दंड खड़ी इलाज हैं । इनके कोई ग्रंथ देने में नहीं आए, परंतु फुटे पद बहुत इधर- डर देख-सुन्त, पुष्ट हैं । इनकी अवता साधारणतः सरस और मधुर है, और अष्टछाप के अन्य दिया की ति कृष्हानंद से भरी हैं । काम इनक्की गणन्दा साधारण श्रेणी में करेंगे । इनका समय १६२३ ॐ अभय था । ग्राह्य सबै उठि जसुमति बननी गिरिधर सुत को उबटि हवाचन ; कीर श्रुंगार काम भूषन सजि फूलक रचि-वि एका अनावति । कुठे बंद या त सुभित बिबिध घोव अरगज़ छावति । सुथन्लाह कुंदन सोभित 3 ॐि छवि कछु कहति ने विति। शिशिक्षि कुसुम की भाइ र घरि श्री मुरी येत राहावते : ॐ दुरजन देखें अरमुख को गोबिंद प्रभु चरनन सिर नावति । | बारहद अध्याथ। प्रौढ़ माध्यमिक काल के अन्य प्रभावशाली कविंगण, ( ५३ अ ) चंद-नामक किसी कवि ने सं० १५६३ में हितपदेश ग्रंथ बनाया है. | उद्दाहर--- संत श्द्रह है जब भयऊ तिरसठ बरस आधिक चढ़ि गयऊ । ‘फागुन मस पाख उजियारा : सुम नछत्र सार्ने सुभ या } . तेहि दिन कब आरंभेज चंद धतुरे मन लाय ! - "हिन उपदेश सुन्न्त सुख दुख बैराग्य नसाय ।।

  • : * ६० ) गोस्वामी श्रहितहरिवंशजी ।

में महाराज देवबंद (अथवा देवनगर ) सहारनपुर के निवासी