पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२९३

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औद्र माध्यमिक-अङ्कर के बंदना की है। इससे जान पड़ता है कि ये सुन्ः थे ! जयसो ने पद्मावत की रचना जायसनगर में ॐ ॐ सुधार में लिखा है कि इनके आशीर्वाद से राज्ञः अमेठी के पुत्र उत्पन्न हुआ । ट्स अरण वह इन पर बड़ी अद्र रखते थे। अतः ॐ भरने पर बढ़अमेठी के फाटक के सामने इनक्की क़बर बनाई गई । इन दाम नोहम्मद था, मलेक-पढ़ इनके नाम के अः सम्मान- सूचक झगा दिया गया है, और जायस में रहने के कारण, ये जन्सी कहलने लथे। इस प्रकार इनकः दूर नाम मलिक मोहम्मद जसी पुड़ गया है। | बहुत लोगों को सच हैं कि ये महाशय वर्तमान भयः के बस्तुतः ग्रंथम कृवि हैं। हमारा इस सत से विरोध हैं । यद्मावत यन्नने के १३ वर्ष के क्षेत्र ११३८ में दादर-ग्रामनिवल इरयसः पुरुषोत्तम नामकू वैश्य ने ‘धमास्वाध-सके द्धा ग्रंथ दनाथः । गोस्वामी सरदासजी का जन्म संद; १५४० के दाम हुआ था और संवत् । ५६०७ में उन्होंने अपना अंतिम ग्रंथ साहित्यलहरी संग्रह किया। इसके प्रथम एक लक्ष पर्दो का अपना सूरसागर-नामक ग्रंथ वे बना चुके थे । ६० वर्ष की अवस्था में उन्होंने सूरसारली-नामक सूरसागर की सूची भी समाप्त कर दी थी। इन तीन ग्रंों के निर्माण में कम- से-क्कम ४०-४५ साल अवश्य लये होंगे ; अतः सूरदास के कविता कम समय लगभई संवत् १५६० से संवत् १६२० तक होता है और जयसी झी कविता का समय संवत् ११७३ से १६०० तक की है। तब सुरक्षसजी कम-से-कम जायसी के समकालीन अवश्य थे। इसके अतिरिक्क यह सरस्म इखनः चाहिए कि जायसी के पड़े ६१ कवि हू ए थे, जिनमें से अनेकों की भाषा वर्तमद हिंद से इस

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