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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबधुदिइ मोहनी कविता कर सकता है। जायसी की भाषा गोस्वामी तुलसीदास से बहुत कुछ मिलती है। इन्होंने दोहा-चौपाइयों में काव्य-रीति पर था कही है। इनका ऋव्य तोंष कृचि की ही का है और कथा-प्रासंगिक कवियों में इनकी गणना छत्र की अदा में है। जायसी ने पद्मावत को बंदना और समस्त अखरावट में मुस- इमान धर्मानुसार वर्णन किया है और हिंदुञ के किसी देवी-देवता का नाम नहीं लिया, परंतु इन्होंने कट्टर मुसलमानों की माँति हिंदू- धर्म या इम-वाजों पर कहीं भी अश्रद्धा नहीं प्रकट की अंदर कथा- बर्शन में उचित स्थलों पर बड़ी श्रद्धा के साथ हिंदू-देवताओं का दर्शन किया है और मुसलमानों और राजा के शुद्ध तथा अन्य स्थानें पर उचित रीति पर राना या बादशाह की यथोचित स्तुति या निंदा की है। इनकी सहानुभूति राना ही की ओर रही है क्योंकि न्याय उन्हीं की तरफ़ था । इस बात से इनकी महानुभावसा की पूरा परिचय मिलता है। इन्हेंने अपनी समस्त' कविता में ऐसा श्रेई भी फ़ारसी शब्द व्यवहृत नहीं किया है जो हिंदी में प्रचलित २ हो । इनकी वंदना बड़ी ही उत्कृष्ट है। (६३) मीराबाई । ये बाईजी मेहदिया के राठौर रशसिंह की पुत्री राव इंदाज्ञों की पौत्री और जोधपुर के बसानेवाले प्रसिद्ध राव जोधाजी की प्रपत्र धः । इन्होंने संवत् ६५७३ में चोझड़ी-नामक ग्राम में जन्म लिया और इनका विवाह उदयपूर के महारानी कुमार भोजराज के साथ हुआ । इनकी भक्रि इतनी प्रमाड़ थी कि ये सांसारिक संबंधैं ये तुच्छ जान्दर श्रीकृष्णचंद्र को अपना पति मानसी थीं । यद्यपि इनके मायके और ससुराल दोनों स्थानों में किसी बात की कमी से , तर्थी षि के कभी पलँग पर न न कर और सदैव पृथ्वी कार मुकर्म विछाकर रहुटी थीं । इसी प्रकार हर बात में यह ऋषियों।