पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३०५

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औदु माध्यमिक अकरछ प्रमाण नहीं मानते हैं क्योंकि इस ग्रंथ क अभी इक सिवा एकाध मजन के र किसी ने नहीं देखी हैं और उन सहश्श्य नै हमने झई बार वादा करने पर भी उस ग्रंथ के दिखाने में कोई तत्परता ने की । इस गोस्वामीजी का वह सूक्ष्म चरित्र वह लिखते हैं, जो अछ तुक होतसमाज में विशेषता माना गया है। बाल्यावस्था में ये अत्यंत दरिद्र थे, फिर इन्होंने श्रम करके कुछ विद्या प्राप्त की । प्रायः बीस बर्ष की अवस्था में इन दिशाह हुश्रा और इनके तारक-नामक एक पुत्र भी उत्पन्न हुः, परंतु बहू थोड़े ४ सम्म में अच्छ वसः । श्राप अपनी स्त्री के बड़े प्रेमी थे, जिस पर एक समय उसने इनसे कहा कि तुम आदि इतना प्रेम ईश्वर ॐ झरते तो सिद्ध हो जाते । इस पर ये घरबार छोड़ रामानं मृत ॐ महात्मा नरहरिदासजी के शिष्य हो र जिन्होंने इनका नाम तसदास रक्खा । इन्हीं के उपदेश से गोस्वःमंत्री ने रमत्यहा की रचना की । तुलसीदास तीर्थ-स्थानों पर घूमा करते, परंतु विपुल्या काशीज में असधट पर रहते थे। इसी स्थान पर संवत् १६६० में इनका शरीरपात हुआ । इन्होंने निम्नलिखित ग्रंथों

  • रचना की है--

दसूचरित्र-मनस (रामायण , कम्तावली-रामायण, गीताव- शायरा, अछादल के, छदाबल्डीं-मायण, वरदै रासाय, भुवन- चढी, पढावबीरासायण, कुंडलेयर रमाब, छुपैरामायण, करवा रामायण, रोलारामायण, झूलनः रामःयण, रासाझा, राभूल- नहुच्छ ,जनक्कीसंगल, पार्वतीमंगल, कृष्ाीवली, हनुमरनमाहुर्क, संकटमोचन, हनुमानचालीसा, मसला , रामललई, वैश्य- संदीदनी, विनयपत्रिका, तुलसीदास की बानः, कलिधर्माधर्मनिरूपण, दोहावी, ज्ञान को एरेकर, मेराराम, गीताभाष्या, सृर्य- . - ---