पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३२७

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इढि अयिभङ-कर कुल सद् छक्का जाके के हैं अछूक झोत, अछन छक्का है छूम धूमन बुमार को ; दिन निसि, निति दिन जब सुधि श्रावति हैं, तब उपजाबै सुधि लाई सुमारों का।। निपनि झन अलर भरने का नहीं, . .. एक छार मारू नाम श्रीवै ना हुदा की । हौं तौ सतवाला छे म र द लेनदाक्षः, । पूर करु प्याला खोज है ना स्वमा का ।। { 35 ) श्रीगोस्वामी विट्ठलनाथजी श्रीस्वामी बल्जाचार्य मह प्रभ ॐ शिव्य तथा पुत्रं थे। इन्छ। ४ ऋदि अपने और चार अपने पिता के शिष्यों में से छाँटकर प्रसिद्ध अष्टछाप स्थिर झी । इनके अनार हुए स्फुट पद देखने में आते हैं, परंतु कुछ झगड़े का मत है। किं ३ पदे इसी नाम के अन्य क्ववेि के हैं। हौ, अंडर-स्स-मंडन- , नामक एक गद्य-ग्रंथ सारण व्राष्ट्र में इन्होने इशाह-विहान- बन ३ १२ पृष्ठ का छिला ! इक्के और इनके पिता श्रीमहा- प्रभु के कारण भाषा-साहित्य की बहुत बड़ी उन्नति हुई। इक्का! अन्य नहर के सं० १६७२ में हुआ और मृत्यु हो १६४३ ॐ ॐ महः- राज ग के द्वितीय केखक हैं। तृतीय त्रैझर्थिक खोऊ रिपोर्ट में इनके और ग्रंथ–मुळाष्टक तथा नवल टीके-क्को पक्ष | प्रथम ॐ रवी इत हैं । धीरज ॐ इंग्ण वि सेवक की दुखी कर जो इनके मैति में शूदि इनके मंद हाय ॐ ॐ ॐ हैं। अमृदसमुह ए करि निकं मिट्टै शुरR रस्म श्रे४ श्वनी की । अ हस मई, या कारखं हैं ध उछ में साक्ष वैदह हर- सॉछ। चाचा इरिश ? १ . .