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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रब्यु विनोद अझह से निकसे प्रान् आठौर । दररूरन बिना बहुत दिन बीतें सुंदर प्रीतम मोर ।। चोर पहर चारङ्क छु। बीते रैन शैवाई भोर ।।

अवधि र अझ हैं नई ए कतहुँ रहे चितचोर ।

कबहूँ नैन निरखि ना देखे मारग चिंतन्त्रत तोर । दादू अइसईि अतुर विरोनि. अइहे चंद कौर । ८६ } ग ब्रह्मभट्ट | गैर भट्ट ने संवत् ३६२७ में “चंद छंद अनद की महिमा नाम्नी पुस्तक मदड़ी बोली गद्य नै लिखा । इसमें कैवल्ल १६ पृष्ठ हैं। . ग्रंथ ॐ हा गया है कि यह वरून गरी भट्ट नै बादशाह अकबर को ३६३७ में सुनाया और विष्णुदास ने १६२६ में ग्रंथ लिखा । अब तक के जुर कवियों में यह विं खड़ी बच्ची गझ को प्रथम लैण्क्क है । यह लेखक प्रसिद्ध कचि गंग भी छू सक्रता है। इन हाँ कबैयों की छान्य-प्रौढ़ता में बड़ा अंतर अवश्य है। इदाहर--- . . . सिद्धि श्री श्री १०८ श्री श्री पातसाही जि श्री दलपति जर अकसर साहा अस वा झें तखत ऊपर विराजमान हो रहे । और आम का भरनें लगा है झीसमें तमाम इस आय-अय कुश वाय-बाय जुहार करके अपनी-अपनी बैठक पर बैठ अयो करें अपनी-अपनी मिशढ़ से जिनकी बैंठक्क वहीं सो रेसम के रस में रेसम कीलू में पकड़-पकड़ के पढ़ ला दिन में रहे है। | इतना सुन के पातशाहाजी श्रीअकबर शाहीशी अदि सैर सौन शहरास चारद ने दिया इनके डेढ सैर सोना हो गया रास बेचना पूरन भयो अमकस कस हुश्मा औसको संवत् १३२७ का ती अधुमास सुदौ १३ गुरुवार के दिन पूरन भए । | { ८७ } भट्ट महारज निंक संप्रदथ ॐ ४ दाद निवासी