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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्नचिनौद रक्ल पक्ष सित संत छत्रत अंबुज्ञ बन सभा ; ल-टोल अदखोडू अमत मधुकर मधु मा ।। सरस अरु झवाहे रहूक का ? पुलिन एवित्र विचित्र रचित सुंदर मनहारी । का–६३६३) करने बंदीइन । मंथ-( * } नयाभर, { २ } श्रुतिभूषण, ३ ३) भूपभूएस । अज्ञ६ ६ ६ । कवितालु-१६३७ । बियर----- अंकुवर हि ॐ दुरार में नर के साथ जाते थे । | इन्हमें खड़ी बोली में भी कक्ति की है। इनकी झाच्य साधारण श्र खी म है । | | रात हैं हराम दाम करत होम काम , .. इन-धाम तिनहों के अपजस छार्दै ; डॉजब मैं जैहैं सब टि-कोटि कीड़े खैहैं , खोपड़ी को गुद का टॉटन उड़ाबैंगे । । कई ऊरनेस अबै घृसि खात ला नाहैं । रोज ॐ नेवाज अंत काम नहिं आवैंगे ; : कचिन के मामले में करें जन जाभी तैन , निभदइसी मरे *फन् म पगे है मरम--- ३४४ } श्रोहितल्लाद्ध गोस्वार वृंदावन ।। ई-- १) बानी, ! २ } समयप्रबंध, (३) वृंदावन-रहस्य, (४) सर्वतत्व सरोद्धार, (३) गन-शिक्षाबत्तीसो, (६) सिद्धांत-सर, (७) वंशीयुक युगल ध्यान, १८) मानसिक वैवाप्रबंध।. .