पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३६३

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औट माथ्याँक छ क्रि—इसमें बानी, ढुंबई, अाई, बेवड, उत्सव इत्यादि के वणन हैं । अमर रन्यद्ध अडथै मैं हा ३६६ पृष्ठे का है। यह इनँ रचार-पुस्तकालय छन्नपूर से देखने को मिलः । गोस्वामी श्रतिरूपलालजी नै समयप्रबंध-दामक ३४ पृष्ठों का एक ११५ पदों में भी ग्रंथ श्वा । थह ग्रंथ छत्रपूर में हैं। इनकी कबिता- अल अाँव में संवद् १६४६ ज्ञा पड़ता है तथा सदायिक इन क्लास ६७५८ ॐ स्वराय होना क्लहवें हैं। इन भणन्ध सुधारछ श्रेझ में हैं ।। थे महाशय ऋद्धिाञ्जलीय संमृदय के अर्थ लुई. अचा हित बृ इनदाइ के गुरू थे । इन कैसे भरे भाई चिन देले बानुअरि ।। हञ्चित दृसंग छैल छबै पदम नंदकुमार । सुनु री सी कदुम तर डाढ़ मुरछी मंद जावें । दईन-इनि प्यःगुनगन गावै तिचत वितहिरिदै । जय धरत न क्ष सुजी न होगन की दीर । '• श्रीरूपात्र हित शरिर हावार सागर सुख की । | बैठे बिछि राबछियाँ जोर ; उद्धनकादित सिंहासन आउन दैपति न्यि किसोर । झगमगाख भूषण तक दीघति प्रेम चंद्र-चकर श्रतिरूप सिँग.३दृद्धि की छिन छिन् उठते झकर १४५ } बलभद्र मिश्न ये मोजे साये हुए श्रोड़ा- निखी पंडित काशिनाथ के पुत्र और केशदास के बड़े भाई थे। केशवदास ने अपनी कविप्रेया में इनका नाम लिखा है । केशवदास के बर्णन में हमने उनका जन्म-