पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४४

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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोद ग्रंथों के नाम ज्ञात हुए हैं । विनोद में जहाँ कहीं संवत् लिखने में प्रकट रूप से कवि के प्रश्नों का हवाला नहीं दिया गया है, वहाँ भी गौण रूप से बह मिल जाता है। कहीं-कहीं रचना-काल में से संवत् लिखा ही है, पर मैथनामावली में ग्रंथ के सामने भी व्रकेट में संवत् लिख दिया गया है। ऐसे स्थलों पर समझ लेना चाहिए कि संवत् उसी ग्रंथ से ज्ञात हुआ है। कहीं-कहीं ग्रंथ या अन्य प्रकार से किसी कवि का जन्म-काल मिल आया, परंतु उसका रचना-काल प्रामाणिक रीति पर नहीं मिला। ऐसी दशा में कवि की योग्यतानुसार ज्ञात वातों पर ध्यान देकर जन्म-काल में २० से ३० वर्षे हक जोड़कर हमने कविता-काज निकाला है। जहाँ लेख से किसी प्रकार यह न प्रकट होता हों कि संवत् ग्रंथ से मिला है, वहाँ उसे अन्य प्रमों से उपलब्ध समझना चाहिए। (२) बहुत-से कवियों ने अन्य भाषा-ऋवियों के नाम अपनी रचनाओं में रक्खे हैं। ऐसे लेखों में यह प्रकट हो गया कि लिखित कवि, लेखक कवि का या त समकालिक था या पूर्व का। कहीं-कहीं कवि के मंथों की प्राचीन प्रतियाँ सिख, जिनमें उनके लिखे जाने के समय लिखे हैं। इन दोनों देशों में यह लिख दिया गया है किं कवि अमुक समय से पूर्व हुआ । जिन ग्रंथों में अन्य कविर्यो । के नाम विशेषतया पाए जाते हैं, उनका ब्यौरा यों है सं० १७१८ का कविमालासंग्रह है। इसमें भी कवियों के | १७७६ सं० के लगभग सैगृहीत झालिदास-हज़ारा, जिसमें ३१२ बिर्यों की रचनाएँ हैं। १७६३ संवत् का दलपतिराय-वंशीधर-कृत अलंकार-रत्नाकर है। इसमें ४४ क्यों के नाम हैं। 15०० संवत् प्रवीण कवि द्वारा संगृहीत सारस । यह