पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४५

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पंडित युगलकिशोर के पुस्तकालय में हैं। इसमें प्रायः ११० दियों की अचाएँ पाई जाती हैं। सं० १८०३ क्रम सत्कविशिरोविराससंग्रह। ६० १८५७ ४ का चिन्मदन्तरं गिद्ध संग्रह ।। सं० १६०० कम गिलगिरोद्भवसंग्रह } .. इन ग्रंथों के अतिरिक्ष सूदन कदि ने से० ५७१९ में सुजानरिव्र-नामक ग्रंथ रचा, जिसमें उन्होंने १५० वियों के नाम प्रारंभ में दिए हैं । सूर्यल-कृत १८६७ वाले वैशभास्कर में * प्रायः १२५ छवियों के नाम हैं। | ( ३ ) सरकारी सहायता से काशी-नागप्रचारिणी सभा सं० १९१६-५७ से हस्तलिखित ग्रंथों की खोज कर रही है। इसमें प्रायः २०७० कवियों के नाम प्राप्त हैं और अपने उपयोग अथों एवं उनके पसी को पता लब हैं । खोज्न करनेवाले पुरुष स्थान-स्थान पर घुमाकर ग्रंथों को देखते और उनके संचत अादि का पता लगाते हैं। इसकी * आठ पटें प्रकाशित हो चुकी हैं और शेष हस्तलिखित हैं । अहाँ हम ग्रंथों से कोई पता नहीं लगा है, वहाँ किसी अन्य उचित कारण के अभाव में हमने ज़ौज का प्रमाण माना है। इस खोज झा भने खोज शब्द से हा ग्रंथ में यत्र-तत्र हवाला दिया है । इससे हमकों सामग्री-संचय में बड़ा सहारा मिला है। | ( ४ ) अहाँ सरोज और खोज में भेद निकला है, वहाँ किस्सा • खास कारण के अभाव में हमनें खोज का ही प्रमाण माना है । स्त्रों ने किसी खास पते के अभाव में सरोज के संवत् के स्त्रीकार किया है । सरोज के संवतों में वड़ रह गया है और उनके दुरुस्त करने का पूरा प्रयत्न भी नहीं क्लिया गया जैसे कालिदास,

  • इसके पश्चात् ४ रिपोर्टों और निकली हैं ।