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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोंद बिंद और दुलह क सरोजक्कर ने पिता, पुत्र और पौत्र मानकर भी उनके समय में बहुत ही कम अंतर रक्खा है । खोज में इससे अधिक श्रम किया गया है। इसी कारण हमने उसका अधिक प्रमाण माना है। ज में प्रायः विला-अलि को उत्पत्ति-काद्ध लिखा गया है। शियसिंहसरोज का हमर्ने प्रायः ‘सरोज' शब्द से हवाला दिया है। (३) डॉक्टर साहब ने विशेशतया 'सरोज' का हो अाधार ग्रहण किया है, परंतु कई स्थानों पर उन्होंने नई बातें भी लिखी हैं, जिनकी सत्यता के कारण भी दे दिए हैं । सरोज में मैथिल लैखर्को का कथन संतपदायक नहीं है। इधर डॉक्टर साहब स्वयं बिहार में नियुः रहे हैं, इस कारण मैथिल-वियों के विषय में आपके अनुसंधान माननीय हैं। आपके अथों से हमें कुछ मैथिल-कविश्रा का पता मिला है। | ( ६ ) जब किसी अन्य समुचित प्रकार से समय का पता नहीं लगा, तब हमने लोगों से पूछताँछकर कई कवियों के काल निर्धारित किए । ऐसी दशा में हमने यह बात उनं वर्णनों में लिख दी है। वर्तमान समयवाले कवियों के हाल में पता लगाए हुए लेखक बहुत अधिक हैं। उनमें जहाँ कुछ न लिखा हों, वहाँ यही समझना चाहिर कि हाल पता लगाने से ही मिला है । | (७ ) स्वर्गीय मुंशी दैवीप्रसादजी हमारे यहाँ प्रसिद्ध इतिहासज्ञ थे। आपने इतिहास के विषय पर खोज भी अच्छी को थी । राजपतानावाले छवियों के विषय में हमें आपसे अच्छी सहायता मिली थी । वर्तमान समय में कृवियां ६३ लँखों के नाम हमें विशेषतया समस्यापूर्ति के पत्र, पत्रिका, सामाजिक पत्रों एवं अन्य एत्र-पत्रिकाओं से मिले । उनकै नेथ अादि का हाल जानने की हमने प्रायः ५०० काई लेखक के पास भेड़े और भेजवाए, तथा प्रायः २० सामयिक पत्र में यह प्रार्थना प्रकाशित कराई कि हम इतिहास-ब्रेथ लिख