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मिश्रबंधु-विनोंद

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१३ मिश्रबंधु-विनोद ने हमारे पूछने पर इन २०५ कवियों के विषय में विशेष हालात लिखने की भी कृपा की । लाला अनावानीनजी ने भी हमें १८५ कायस्थ कवियों की नामावली भेजी और स्वर्गीय पंडित' मन्नन द्विवेदी गजपुरी तहसीलदार संयुक्त ने भी प्रायः ४० कवियों ? भामावढी हमें भेट की । इन दोनों नामावलियों में भी प्रायः ६० नए नाम मिले । सतना-निवासी स्वामी भोलानाथ ने ६३ कवियों की नामावली भेजने की कृपा की । पंडित व्ररत्न भट्टाचार्य ने वर्तमान समय के २७ लेखकों के नाम हमें लिख भेजे । इन दोनों महाशय के नाम में भी कुछ नए नाम मिले । आँधली-निवासी स्वर्गवासी पंडित युगलकिशोर ने प्राचीन एवं प्रसिद्ध कवियों तथा ग्रंथों के विषय में हमको बहुत-सी बातें बताईं। जिनके कथन इस ग्रंथ में एवं नवरस्त्र में जहाँ-तहाँ मिलेंगे । कोरौना-निवासी पंडित विश्वनाथ त्रिवेदी ने हमारे लिये वर्तमान कवियों के पास प्रायः ३०० कार्ड भेजने की कृपा की । उपर्युक्त महानुभावों को हम उनकी कृपा के लिये अनेकानेक धन्यवाद देते हैं। श्रीमान् महाराजा साहब बहादुर छतरपुर ने वैष्णव संप्रदाय के तथा अन्य कवियों के विषय में बहुत-सी उपयोगी बातें हमें बताने की दया की और हमें अपना बृहत् पुस्तकालय भी दिखलाकर बड़ा अनुग्रह किया । श्रीमान् सरीख महानुभावों की दया विना वैष्णव कार्यों एवं संप्रदायों को पूरा हाल में न ज्ञात होता । | ग्रंथ-विवरण हिंदी भाषा को उत्पत्ति संवत् ७०' के लगभग अनुमान की ज: सती है, परंतु उस समय का कोई ग्रंथ मिलना बहुत कठिन है। संवत् १३४३ तक सिवा. चंद अंर तत्पुत्र अल्हन के, और किसी के भी काव्य-ग्रंथ हमारे देखने में नहीं आए । इसीलिये अंथ में हमने यह समय हिंदी का पूर्वारं भिक काल माना है। इस