पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/७३

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भूमिका में अदि चर्च वृत्त्यानुप्रास आया है। इन दोनों पदों में अधिक अभेद रूपक है । पराग के कारण परिणाम नहीं होने पायो । भूरि, भूमि, भाग में भी वृत्यानुस है । इस पद-रज के स्पर्श में भूमि के भुरि भाग्य-वढेन से उसमें श्लाघ्य चरित्र का महत्व प्रकट हुआ, जिससे उदात्तग्लंकर आया । यहाँ ऋद्धि से भी उदात्त सकती हैं, परंतु श्राचाय में ऋद्धिवाले उदात्त का धन से ही रूई कर लिया है। पुर झास्न धन्य, पुन्यमय तथा शोभायमान हैं। यहाँ समुच्चय अलंकार । हुआ । प्रथम दो पदों में विशेष वर्णन, द्वितोय दो में सामान्य और तृतीय ट्रों में फिर विशेष हैं, यहाँ बिकस्वर अलंकार हुआ । कुद्ध अलंकारों में अप्रस्तुत प्रशंसा मुख्य है। क्योंकि प्रस्तुत राम की सीधी इन छेदों में बड़ाई न करके कवि ने मार्गस्थ ग्राम आदि का अश गया है, जिससे राम-यश निकलता हैं। इन छंदों में प्रद्यपि लाक्षणिक पद अशर हैं, तथापि बाचक पात्र हैं और उसी को सर्वत्र प्राधान्य है। यहाँ अर्थव्यङ्ग प्रधान गुण है, परंतु समता, समाधि, सुकुमारिता, उदारता, प्रसाद और कांति भी हैं। सो इन दो छंदों में साहित्य के १० मार में से श्लेप, माधुर्य और ओज छडकर सभी वर्तमान हैं। इतने गुणों का एक स्थान पर मिलना प्रायः असंभव है। इनमें मारती और सात्वती वृत्तियाँ हैं । दोध में यहाँ भूरि-शब्द पर ध्यान जाती है, जो कि भार और भूमि दोनों की ओर जा सकने से संदिग्ध हुआ जाता है, परंतु वह भी भाग का प्राबल्य से विशेष होता है, सो दोपोद्घार हो जाता हैं | वर्णन नागर है। क्योंकि पद रज पड़ने से प्रतिस्थान ऐसा हो जाता हैं कि उससे अमरावती भी शर- माती है। यहाँ अद्भुत रस का समावेश है । इसके आलंयन म- चरण, एवं मार्गस्थ पुर-ग्राम हैं और स्थायी यह आश्चर्य है कि मार्गस्थ पुर ग्राम के महत्व को ना तथा सुर-नयर सिहते हैं, एवं अमरविती उनकी समता नहीं कर पाती । उद्दीपन यहाँ राममन की