पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/८१

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वह अबैध बाँधने को छोड़ दिया । बहू मानता ही था कि राज्य उससे उसकी विधि अवश्य पूछेगा । इसद्धिये अपनी श्रीर से एकाएकी बहुत कुछ कहकर उसने संदेह का कारण उपस्थित नई किया । राजा के पूछने पर उसने यह युक्केि भी अपने अर्धन बताई। परंतु अपना प्रभाव स्थिर रखने को यह भी कह दिया कि वह राजा के यहाँ नहीं जा सकता है फिर भी इस भय से कि प्रभाव-नत्व के कारण शायद राजा उसे घर ले आने का अनुरोध ही न करे, पटी ने यह भी कह दिया ॐि ॐ न जाऊँ तव हय अकाजू ; बल ब्राइ असमंजस आज ।” इस पर हाजी ने कुछ किया और वह तुरंत मान या । किसी नए मनुष्य के एक्काएक ऑअन बनाने से हो के संदेह उठ सकता था, इसी से उसने राजपुरोहित के चैध में ऐसा करना उचित समझा और तीन दिन मैं वहाँ का सब हाल जान जैनें के विचार से इतना समय अपने हाथ में रखा ३ पट्टी के स्वयं आश्रम ही में रहता था, अतः उसने कह दिया कि मैं मुह को अपने रूप में यहीं रक्खें । | अब कपटी का पूरा प्रबंध ठीक हो गया, का अधिक वार्तालाप में किसी प्रश्नोत्तर द्वारा संभवतः संदेह उः पट्टने का भय सस्क- कर उसने राजा को तुरंत सोने की आज्ञा दे दी, तथा काल- केतु की साया के सहारे स्वप्रभाद-वर्द्धन के विचार से राजा को सौतें ही नगर पहुँचाने का वचन दिया और उसे पूरा भी कर दिखाया ? | शूकर को कोलकेतु निशिचर के स्वरूप में एकाएक आने से पाठक पर नाटक के समान भारी प्रभाव पड़ता है । “समित भूप निद्र अति आई । सो किमि सो सच अधिकाई ।” में स्वभाव-वर्णन की ऋच्छी बहार है । काल के कार्यों में अर्म-शूरता जूब देख पड़ती है ।