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मिश्रबंधु-विनोंद

१२ मिश्रबंधु-दिनोद बन होय ; रसहि जगावै दीप ज्य उद्दीपन कहि सय ।' आलंबन में नायक-नायिका ङ्का वर्णन अति है और उद्दीपन में श्रभूिषण, चंदन, यद् ऋतु, वन, नदी, पहाड़, लता, कुंआदि की । अनुभाव में क्रियाएँ अथवा इशाएँ हैं, जिनसे रस का अनुभव होता है । स्तंभ, स्वेद, रो- मांच, वेपथु, स्वरभंग, वैचर्य, आँसू और प्रलय नामक आठ सात्विक भाव हैं । कोई-कोई जु भा को नयाँ सात्विक मानते हैं । निर्वेद, ग्लानि, शैका आदि ३३ संचारी भाव हैं। हाव का लक्षण यह है- "होहिं सँग सिँगार मैं दंपति के तन आय ! चेष्टा जे बहु भाँति की हैं कहिए दस हाय” । नायक के पति, उपपति और बैंसिक-नसिक तीन प्रधान भेद हैं। इनके भेदांतर बहुत हैं। पीठ मई, विट, चैटक और विदुधक नायक सुखी अथवा नर्म सचिव कहलाते हैं। नायिका के भेदांतर आति, कर्म, अवस्था, मान, दशा, काल और गुण के अनुसार किए गए हैं। परं तु देवजी ने उन्हें वंश, अंश, जाति, कर्म, देश, काल, गुण, वय, सई और प्रकृति के अनुसार विभङ्ग किया है। इनके अतिरिक़ नागर, ग्रामीण, ज्येष्ठा-कनिष्ठा और सखी के भी कथन आए हैं। स्वकीया नायिका के यौवन, रूप, गुण, शीद, प्रेम, कुल, भूषण और विभव-नाम आठ अंग हो सकतें हैं । इन आठों अंगबली नायिका को अष्टांगवती कहते हैं । परकीया में कुछ को छोड़कर शेष सात अंग हो सकते हैं, परंतु गण्डिका में कुल, विभव, प्रेम र शील का अभाव है। इसी से कई प्राचार्य इसमें वन-योग्य नहीं समझतें । उपर्यु सात भेदों के अनुसार सूक्ष्मतया हायिका-भेद यहाँ लिखी जाता है- . {१} आति-पद्मिनी, चित्रिणी, संखिनी और हस्तिनी । . १२) कर्मस्वकीया, परकीया और सामान्या । ज्येष्ठा-कनिष्ठी का | कथन स्वकीया के अंतर्गत होता है। (३) अवस्था=मुग्ध, मध्या और प्रौदा ।