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मिश्रबंधु-विनोंद

भिश्वबंधुभदिनोद एवं अरुणा हते हैं। प्रथम में रति और शक दोंनें रहते हैं, परंतु करुणा में चैव शौक रह जाता है। अवं रस में कुछ मुख्य हैं और शेष उनके संग ।। मुख्य इस उनके संयी रस ऋगार हास्य, भयानक बोर रौद्र, अरुण - शांत । अद्भुत, बीभत्स ऋगारी कवियों ने वीर और शांत को भी ऋगार के संगी मान- र उसे रस-राज कहा है। अब कुछ अन्य रस के भेदांतों का भी दिग्दर्शन यहाँ करार हास्य-उत्तम, मध्यम, अधम । करुण-सुख करुणं, लघु ऋण, अति ऋण, महा करुया ! करुण रस का प्रादुर्भाव इष्टहानि, अनिष्टश्रवण, शोक एवं अशा के छूटने से होता है। बीभत्सदन-संकोच, मन-संकोच । वीर=युद्ध, दया, दान । निम्नलिखित रस एक दूसरे के मित्र यो शत्रु हैं- मित्र ४ गार का हास्य, | श्रृंगार का बीभत्स | रौद्ध यं करुण चीर का भयानक 'वीर की अद्भुत रौद्र का अद्भुत | बीभत्स का भयानक करुण का हास्य जो रस एक दूसरे के मित्र या शत्र नहीं हैं, ३ उदासीन कहलाते हैं। मित्र ए६ उदासीन बसों का साथ-साथ वर्णन हो सकता है, परंतु अन्नों को नहीं । देश-विरोधी, काल-विरोधी, वर्ण-विधी, विधि-विरोधी, ६ .