पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०९

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कर्बदेशन] पुर्जाकृत प्रकरण । | सुरूदेव जी के अायार पां एवं राजरिएंट्स में परजी | उपाधि दी । फाजिल अली प्रकाश में लिप्ता है कि यह् उपाधि अल- यार की दो झुई है और वृत्तविचार में इसका राजसिंह द्वारा मिलनों छिपा हैं। निष्कर्षे यह निकलता है कि हम डैनै माश्यां में पृयक् पृथक् समय में इन्हें यह उपाधि दी। ठाकुर शिवसिंह जी ने इनवे बनाये हुए नग्न अन्य के नाम लिने हैं- घुचविचार, छविचार, फाड़ अलौ प्रकाश, अध्यात्म- प्रकाश और दशरथ य । पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने इनके नन्न ग्रन्थ लिखे :- रसाव, वृत्तविचार, श्ट गारती; रिफ़ाज़ल अोल्लाका । पेदी जी ने झोप झन्धों के दृशच त घीने में सन्देह मकर किया है। उन्होंने लिखा है कि रसा, धृदिचार प्रेरफार अग्ली प्रकाश इन देने में प्राय ६, शेष नहा। इन =(मायलय मिलाने से निस जी के मात्र मिस ऋ । वृत्तधना, छन्दिर, फ़ाज़लअलीप्रकाश, रहार्यच. ता, अध्यात्ममक और दशरथ रॉय 1 इम इन सुखदेव-इश मानसै है। इन के नवशिय नमः । ३ का पता चला है । फालिअळींप्रय होता पुरुषालय में हैं, दुराचार और छन्दविचार | किशोर ने हमारे पास भेश दिये हैं, और रसाय प्रय प्रथाइश की दैरुना चै पताते हैं। टाळ7 मारे । दारथ राय 1 जुम इन सब है। १ यः स्तलिखित दृमारे दविचार गडित युगुल