पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११३

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कविराज ] पूर्याबंकृत प्रकरण | भई धरात, मेरो जियो इति | ज्ञागु जाग ३ वही इह चोरन की इस ६ ।। आभा की अवधि, गुन गन जाके निरवधि कविराज्ञ सील निधि भाग भरी भालु हे । हिग्मति के हातिमु, मातिमु फी महार्मद, दिंषु तुम ताफा न जा करवाज़ ३ ।। की धर अतुल उजियारा इद्ध कुल, फाजिल अली प्रबल परम कृपालु हैं। शाहिम को सुर बरु, धरती फी धराध दीनन के दैवत, झरने को कालु । इसान प्रकार में गतिराम कृत रसन्न के बराबर है। यह द्वाद्विपा और में राम मनसि ६ की आशानुसार मचा थी। इसमें नयरस का बयां बिलक्षण चर्मन ई और द्विधे जी के मतानुसार यह जी के सच इन्धों में श्रेष्ठ है। गन्ध इजा ही उद्दनीय हे। कानन टूटे विन के मन में यई ग्यान । का आनन की जाति मिडि गज्ज अानन के ध्यान । मरदम राउ निदेस क्वी सादुर सीस चाय । मिश्र पुत्र सुरादेव ने दोन्ही ग्रथ बनाय है। ३ाहे जहाँ म नन्द कुमार उहाँ चलीं चन्दमुल सुकुमार है। गाविन ही को किया गइन। सय फुले । अनु फुकुन्द की हार ६ ॥