पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६

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मिधन्धुः । । [+ १(६! माना 9 की उदयत बता दी पेनापति गधि की कपिराई दिन ति ४ ॥ नुनि सदिग मले पर थे। धरत युधे रिफा सलत जे ६ घरशिया या फे। लगद घिधि पच्छ सेहत ६ गन । | अचन मिटत भूइ कति उज्यारी है। से सीस जुन किं वर में घुमत नीक गि यिधिशात मन माई नरनारी के। सेनापति कधि पे फत्ति विलसत अति मेरे जान पान है अचूक चापथारी है । सानी से सदित मुरम इ ई जद घर पहुत भाति आर्य समाज्ञ वो ! संध्या कर छानै अलंकार में अधिक या में राी मति ऊपर सरस से साज्ञि की । सुना महाजन चैरी अति चारि यरन की | सातै सेनापति कई नजि वर दाज पौ। जिये। अचाइ य चुराई नाई” फेई । विन सी थातर में यचिच्चन के व्याज ६ ॥ "सेनापति बनी है या सद् रितु मुद्रन का अगम मु परवीन के। शिपसंद न चायों द्वारा सेनापति जी फी भरु $ है.--"काय में इनकी प्रशंसा इमकी तक के अपने समय भानु थै'।