पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७१

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कवीत्र] | पूर्वालंकृत प्रकरण । - कोई भी महाराजा गहरू हुआ। जान पड़ता है कि ये राज़सि ६ | जैपुर के महाराजा की ठकुराइस में हेगे । धूल फन के वन | में ए १ फवन्द्र का जन्मङि संवत् १७१६ माना है। इनके नायै हुए गुरदसति इ, भगवन्तसि इ, गति, मार वि- बुद्ध की नासा के प्रकृष्ट छन्द्र मिलते हैं। रजा गुरदत्तरिय ६ ने स्वयम् १७६१ में सतसई घनाई थी। इससे । फन्द्र' के संवत् का परिचय मिलता है। इन के अन्य पाय सक देर ही मिले हैं, परन्तु इन्हों ने पैर प्रन्य मनश्य इनायै हांगे। इन्हों ने प्रजभाप में कविता की जा बहुत ही प्रशंसनीय है । इद्दों के अनुमास का भी आदर घt । इन व गार रस की कविता माइत अदिग्गीय हैं। इन की गञ्जना पद्माकर की थे में की जा सकती है। उदाहरः लीजिपः-- हुजन ते मग साचत गायर ग वनवा देचगिरी की । सै। सुन के चुनु सुता तक जिग पंजर स चिरी के || वार, ५ नहि नैनन ते सजनी असुवान की प्ररि झरी का । भार मनोहर नप फुमार के द्वार दिये ज़छि मैलसिटी के।। रन वन भू मैं उघ भुज तिको १ मढ़ी। कढी म्यान मी ते मिश्म विप भरी हैं। जा रिपु ६ बसे सेना नौ प्रान नाही ने गाम अनेक हार झारे ते न झरी है। भगत कविन्द्र राय युद्ध अनिरुद्ध तनै । वृद्ध भीरता से एक तू ही धन की हैं।