पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७३

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म रश सिंह ] लंकृत अफरए । ५क कविया में न्दै मध्यम अर्थात छन् कधि की धगी में पते हैं। इनका एक क्वचित नीचे लिखा जाता है। इन गल गान वयो फयत्र सियर साई इत मैज़दीन करि भारी भट भरती । । तेप वी इकारन हो चीर इदकारन है। थैला की पुकारने धमकि उठी धरती । शीघर नवाव फरजन्द स्व सु संग जुरे | ज्ञान अघाई जुग जुगन की झुरती । इहरु दिल भी गाल परी ही तु म | करने निराली है। हिरीनें मीर परती ।। माम–(५.५३) महाराजाजसिंह कृष्ण। अन्य राज्ञमका, ३ उपायनायफ, ३ मादुपिसि | राजकाल-१७६३ से १८०५ तक। विचरश में महाशय कुराह के आज्ञा प्रसिद कवि महाराजा | सावन्तभि ( नागदास) के पिता थे । इनकी अदिता • सुधार ४ से की थी। उदाइरया। थी परळ बदाय ६ राधा वर १स पुज। केल कुतूहल आस इस फीनै कुज निकुञ्ज । तप अपी ने संयमी निरिस दिन वैधत वादि। भानु भुता के रस की हैं। हर परत जु चाहि ।