पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७५

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पूर्वोकृत मकर । ११३ संयत् सन्नरी लिनै अटि गरे वीस ] । लगत बरसे याईसई एमड्रि चल्ये। अवनीस। यह संघ धुंदेलखंड गर्जेवियर से मिलता है । हाल में फुल ६f सी हो लिखी है, यहां तक कि एक युद्ध में साल के गर्ने का भी घन किया हैं । इनकी कथा सच तण में देलखंड गजेटियर से मिलती है, इसलिए उसे सच मानने में कई का नहीं है। सती । इनके अनुसार ६ देला क्षत्री महाराजा रामचन्द्र के एज हुदा के वश में हैं, पर इनकी कार एवं गरिधार, उपाधियां हैं। इस चंश में पंचमसिं ६ एक बड़े प्रतापी राजा हुए। उन्हीं के पुत्र महाराजा में देला उपनाम "व" थे और जिस देश में इनके शज़ घसे इसी के लेाग देलखण्ड कहते हैं । उस समय यु पेक्षा लीग महेयी और माछा में राज्य करते थे । लाल ने वंदेला के पूर्वजों में हरिग्रह्म से लेकर छत्रसाल पर्यन्त सब के नाम लिने है। मेढ़ा के मधुकर, शाह इत्यादि का नाम भी इसी बैंपली में मा जादा है। लाल ने चंपतराय के विज्ञ पा सन घड़ादी इचम और विस्तार पूर्व विया है और अपनी कविता में दिखला दिया है कि सत्काम भारतवर्ष के इतिहास पर संपर्शाय फा कितना पभाव पड़ा। चंपनिय घार गाई थे। अतः इन्दन पार पर अपनी फरिया में बहुत कुछ फदा है। यथाः-- अ य नष्ट । र मुड़ दिए की नी । । चारैज चरन पुन्य व स्त्र । चाउ फल्न दैन अनु अाया। दिन्दुयान सुरै गज याना | ताके चाय देत खाना ।