पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८

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मिश्रबन्धुवान् । [सं० ११८ में उपमापे भी अट घेत्रि थाज़ कर कहते थे । इन। लेप बघिता बहुत प्रिय ध पार इम उदाहरण द्वंय में हर जह प्रस्तुग ६ । उत्तम उपमा ३ इदार विरुप एनीय र। के ईद १० २८ तथा ३५ पयं पातुधं तर गइ छन्द २० २९ द्रष्टव्य है। - इनका पटतु बहुत ही पिछविर्षक यना है। इस इन्टों ने केवल उद्दीपन का मसाला न धनाफर इसमें मोतिष ज्ञामी का घड़ा विलक्षण घन किया है और एक अध्याय मर में इसी का समा अँधा है। मषिा काव्य में प्रकृति-धन वा कुछ यु अमाप सर देख पड़ता है, परन्तु सेनापति जी ने इस अमाव का पूर्ण करने का अच्ज प्रयस किया है। इनके प्राकृतिक पर्यन बहुत ही सुधर र अनूठे होते हैं । इमारे मत में देय है। छैड़ मापा के विसी कवि ने पटसनु का ऐसा विशद् पर्गन नहीं किया है। उदाहरणार्थ देा छंद प्म और यप को लिपते हैं। इनकी कविता में उद्दण्डता का भी प्रधान गुण है । इस में प्रत्येक यान पर इनकी आत्मीयता झलपाती है । आपने प्रायः कद्द मी विसी दूसरे की असाधारण भाव नदी प्रद्द किया और न किसी संस्कृत लोक का ही था या भाव लिया है। इनकी कविता इन्हीं की। कविता हैं और सन इन्हीं के मस्तिष्क से निकली है । उदाहरण । पालि की सपूत पछि पुरङ्कत पर हुका दूत धरि रूप बिफराळ के।