पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१९

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सेनापति
४३९
पूर्णाकृत प्रकरण

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अनापति] मूर्जत कर ।। ४३४ युद मंद गादौ पाउँ रोप भी ठी सेनापति बन्न पदो रामचंद मुवपाल फी ॥ कप फहलि यो कुंडली टुबलि रच्चों दिमाज इद्दल त्रास परा चक चाल है। पाँच धरत अति भार के रिते भी ' पक ही परत मिति सपत पत्ताल र ॥ वृप फै। तन तेज सहसा करनि ती ज्वानि के जाल बिंकराह परसत । तुञ्चति घरनि जगू ऋतु झुरन हीरो इ के पकर पंथी पछी विर,मत है। सैनापति भेक सुपरी ढकेत ऐति धमका विषम और न पात सरकत हैं। भैरै जान पैन सोरे वैर हैं। परि नै घरी एक वैठि का चामे चितवत है। सेनापति उमए नए जलद सोयन के चार इ. दिसान मर्दै गरे यि के। सेमा सरसाने न वा जात फेडू भाँति । आने हैं पहार मा फाजरे के ढोय * ॥ घन से गन प्यो तिमिर सधन भपैर देत्रि में पत माना गया रवि लेप कैं। वारि मास भए म निसा भरम मान | मैरै जान थाही तें रहुत इ सास है॥