पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८६

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६४ मधइन्धुपिनेदि । [१० १७६१ धही उत्तमगा से कर दिया है। इनकी कथित्यशक्ति नथा पडिय प्रशंसनीय हैं। इन ग्रंथों का परिचय नीचे दिया जाना हैं:- | (१) “अलंकारमाडा" अलंकार का ग्रंथ या ३१७ देश में है। इसमें प्रलंफारे का प्रर्यन उत्तम रीति से कया गया है और प्रायः लक्ष या उदाहरण एक ही देर में दे दिये गये हैं। "दिम सी हरके वास से। जस मालापन हानि (मालापमा)। "बिधु से फेज मुकंज से मंजु घदन यदि याम' (एसनेपमा)। “तु असंगदि फोरन प्रवर फारज़ भिन्न मुग्ने । चलि अदिति यानदि ससत नसत देर के प्रान" (असंगति) । (२) “नग्नशिख' में राधा कृ का अच्छा नम्नशिप ४१ छन्दों | में कहा गया है। त्रिभुवनपति के दरत दुप देखत धी सदन सुबास ऊँचे थाह खेम रस है। नेह जुत ससे यहाई सुख सरसे ये सीनि ६ यरन के प्रगट सुदरस ६ ॥ सय दिन एक सौ मद्दादम है सूरते थे। नागर सकल सुप्त सागर, पस ६ ।। परी मृगनेनो पिबेनी सुग्छ दैनी अति तैरी यद्द पेनी तिरबेनी ३ सरस ६ ।। तैरे एकपाल घाल अति ही रसाद मन जिनकी सूदाई उपमा विवारियत है । कोऊ न समान ज्ञादि की उपमान अ६ यापुरे मधून न देइ जारित है।