पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८७

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६३३ पूरठ मित्र | पूर्दालंकृत प्रक्रय ।। नेकु वरपन समता की चाह करी कहूँ भए अपराधी पैसे विचे घायित है ॥ सूरति सुयाही ते अगत बीच आजु ६ ली। उनके बदन पर छार ढारित हैं। (३)"अमरचंद्रिका' सतसई के दाहों की टीका इन महाशय ने सं० १७९४ में बनाई। यह महाराजा अमरसिंह शेषपूर के नाम से बनाई गई। इसके समान कोई भी टीका सनसई की अब हो, नहीं पा । इस मैं बहुत खै अधं फड़े गये हैं पर अलंकार लक्षणा, यजना, इत्यादि भी खून साफ़ करके दिखलाई गई है। इस पर प्रसन्न कर महाराज ने इनकी बड़ी द्वातिर की और विकुलपति की पद्पी । अस्तव में यह ग्रन्थ ऐसा ही प्रशंसनीय घना भी है। (४) 'कचिप्रिया को तिलक भी इन महाशय ने बनाया परन्तु इसमें संघर् इत्यादि नहीं दिये गये हैं। यह भी लिफ उत्कृ जना ३ । इसमें कुछ क्ष का तिलक नहीं किया गया ६, परन्तु जी जा पळ टिन र बिचादपूर्ण हैं उन पर कारहित होकी फी गई ६, भै सभानैन प्रशंसनीय है । इससे कैयदास का माय पाठक सत्र में अच्छी तरह समझ सकते हैं। (५) इन ग्रन्थों में अतिरिक्त न्हा ने बेतालपंचचिंति को रफत से गय प्रज भाग में अनुवाद किया | पइ उदया धारदजी सिई सचाई की याज्ञा से विया गया था।