पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१३

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३ पूर्तत किरण । को फी धुकार में सवार में एक बार पार पार कर लि कुमार के ।। (६४५) चीर । में मदाय धीवास्तव कपथ दिल्ली-निवासी थे। इन्होंने प्रा- धन्दिा नमिक नायिका-मैयु का गंय संवत् १७७९, में बनाया जिस में ४२५ देवा, सरैया, घनाक्षरी अयादि इरा नायिका भेद पप रस- भेद कहा गया है। भाषा इनकी प्रज्ञा भापा है और बहु साहनीय हैं। हम इनके साधारगा श्रेणी का प्रयि समझते हैं। उदाह्री पर निगाह कीजिए। अश्वन अट्न और फर विसाल बाहु फैन फी हिट है कई सामु जु रुन्न । प्रवल प्रचंg निसिचर फि धार धूर चाहत मिलाये दसघ्र अंधमुख पे ॥ चनकै सम भूमि पर इस फन हत पुरै लंक मंक दीइ दुल फै। पालकि ललकि मैं धीर रघुवीर धीर महि पर मीडि मारी। अच्च दसमुख के ॥

  • ज पठी सुध कति भान से देम्वे प्रत न कटु ],

दामिन इ घम सीइ मैं देश है। राति नाहिने छ । मेला ॥ 9 से हैं मन भाचन के मन में तुम नैकुन मुत्र खेली।

  • नहीं बलाय यो पेसी न नि नीकै कान्द्र मैं सि ले ।