पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१६

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। fuपद् । [+ १४८ । यी ६ ६ । ई है? 7 पप में मन मा शर अपम न पड़ता है, कि इन रद्द र वाई । घाट या पप भय हु न म हृ, 'रंपाद frपी धि प र एक में न्यू fमरने ६ । यी ६ में अन्ना लिने पपि में अपना' । E, १ इन मा ६ पाने आदीय नहीं ६ । । गए। परि पर पड़ र अग्नि पाते हैं कि मिर्म उत्तम विना म ६ गती इन द व १पना दे पार, वागमा दुरासद अउद्यम ऍड़ देना प्रापि । यान यह है कि उत्तम रवि किमी भी गापा में मनमानी आदिमा पर पता है इम पाने कि नाग एप वर्मा पिग्य वा अययन काबद्दय सातट है कि मैं इद-बनिय का भी इन ६। इन महा- शय की रचना देने से न पड़ता है कि ये भाषा विद्वान् देने के अतिरिक्त, हरपा नया सुम्वा भी पूत्रता ४ मार यदिप वा मी प्रयास र थे। इन्द्राने घी ६ उकृती हुई गाय में रचना की है और उर्दू के पियं की भात ग्र; घड़े तलाज़िम्म धाँधे ६ । निझी रचना में हर म्यान पर लादपारी में वरीय भाच म्यापन से घर में कुछ लघुता आ सकता है, परन्। 'कष्ट- कल्पना से इड़ी अर्ध । अयमय सता है। इनकी रचना में स्वच्छन्द उमंग, उपना, रूपक और अनूपन की व बारे में और पालत की घलन्द परवाज़ ना याफियां हैं। इनकी मंगना हम पद्माकर की भेग में भरते । कुछ द नीचें ! उधृत किये जाते हैं:--