पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४०

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मिधाधुदि । [सं० १७८१ (६५४) जोधराज । | इस कविवर ने हम्मीर, थाय नामर्श पत्र २० पृष्ठ दामनेष्ट्र अन्य नयाद के राजा चन्द्रभान घटुवान ६ ने स शनाया । इस निगम पछि ६ पय में थी का सन्देह पड़ गया है। सज्ञ में इनका नाम नहीं ६ । ग्रियर्सन माय ने इनका ममय सपत् १४२० लिप्त पर इसकी शुद्धता पर सदैट्स भी प्रकट किया है। यायू श्यामसुन्धुग्दाम ने इसका भयम् ७८• माना है। उच बापू सोइया के ग्नवा ( जयपुर ) ६ मगिज़ कुमार ने यह पत्र में इन्ट कि नीमराना ( नोवा गद) वर्तमान महाराज श्री १०८ नवनिए राजा पन्द्रभान की दसवीं या ग्यारही पदी में हैं। एक पीढी रग मग पीस घर्ष की पड़ती है, सा इस हिसाव में भी १७८५ सय पन्ध निर्माण पाक जान पड़ता है। स्वय जाधर ने ग्रन्थ-समाप्ति का समय थां पि। ६। चन्द भाग प्रमु पच निनि सवत माधव मास । गृह सु प्रतियी जीव जुने ता दिन अन्य प्रयास ।। भूपति नीबागद प्रगट चन्द्र मान चड्वान् । साम दाम अरु भेद बुरा दडाई करत ग्रान ॥ यहां नाग यी गिनती से सात का अर्थ लेने से सन् १७८५ अती है, पर नाग की सम्या साधारपवयी आइ परी ई, यथा अनन्तै बामुवि. पद्मो मेटा पद्मघ नफ। कुटीर फर्केट' श पश्चाष्टी नाम्म' कीर्तिता !