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[सं० १७८५
मिश्रन्धविना।

थिसद अंत्र सुर मुख तंत्र तुम्वर जुन साई। घिसद ताल इक भुजा दुतिय पुस्तके मन माई ॥ गति राज हंस हंस चढी रठी सुण परति विमल । जै मातु सदा इरदायिनों देटु सदा घरदान बल !

(६५५) रसिकमुमति।

ये मद्दाशय भ्यदास के पुत्र सुयत् १७८५ में गये हैं। इन्दनै घानी में अलंकारचन्द्रोदय नामक ग्रन्थ हुयलयानन्द के आधार पर बनायो । इनकी कविता साधारण है और ये साधारण शेयी के कवि हैं। उदाहरण है। साइत जुगुल किसर के मधुर नुधर से चैन बदन चन्दू सम करत है निरास सीतल नैन । आयनोक अरि लै, न यस अरि वूिहि दुख देय ।। रवि सेरै चले न फज की पति ससि हरिलेय ॥

(६५६) गंजन

गज़न कवि काशी के रहने वाले थे। इन्हों ने सवत् १७८६ में घमिरुद्दीन शाँ हुलास नामक अन्य बनाया । इनका नाम दियसिह- सरोज में नहीं लिखा है। इन्होंने अपने प्रत्य में लिया है कि इनके खुद प्रपितामह मराज मुफुट पय भी अच्छे कवि थे, यहाँ तक कि चय' अकबर बादशाह नै उना पड़ा मादर किया पा। मुकूट राय का केई इन्द् इन्हे ने नहीं टिवी पोर न म । नै उनका केाई छन् देखा है। शियल इसराज में भी उनका नाम