पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४३

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गान] , पूति प्रकरण । १ नहीं है 1 मुकुट राय के मान सिद्द, घनकै गरिधर, इनके मुरलीधर और मुरलीधर के गंञ्जन राय पुन एपन्न हुए | ये महा- इय गरा गुज़र ग्रामण थे । ये सब चलें इन्हीं ने अपने ग्रन्थ में लिखी है। ये महाराज कहते हैं कि केमद्दों में इनकी बड़ी मोदर किया और इनके बहुत सई धन देकर यह ग्रन्थ पान देकर इनसे नवाया । इसमें ३२७ छन्द हैं । इस गन्ध में झमरुद्दों खां की प्रशंसा के बहुत से छन्द हैं । ये महाशय दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के चोर थे ! मुसल्मान देने पर भी इन्हें दिग्दी- साङित्यसै इतना प्रेम था कि एक ब्राह्मण कचि की हजार रुपये ट्रैकर भाषा का प्रत्य इन्द्रों बनाया। जिस प्रकार से मंजन में इनकी प्रशंसा की है, उससे विदित शैता है कि कबि इनसे बहुत पसल था। इस से जान पड़ता है कि उसे इनसे बहुत घन मिता था, और रंजन नै पैसा छिन्ना भी है। इस बात से क़मरुद्द अ की गुण- आफता प्रकट होता है, क्योंकि एक ची उन्नै में भाषा कप फा सत्कार किया और दुसरे सत्कार भी किया तो ऐसे मेसे काम कर के एक वास्तविक सुकवि का किया। इस अन्य के पलाश में एतमादहोछा, घड़ी' पमिस ई का यर यति हैं और प में भावभेद् एवं रसभेद कया गया है। गांजन नै छ। झनुकों का रूपकमय अच्छा अर्गन किया है और इन्हीं में सामान अफ दिखाया है जिससे इस बात पर पुष्टि देती ६ वि यद्द कवि अमीर अदिगियों में रहा है। इसकी भाषा मधुर हैं। अन्य सुकवियों की भांति इसमें मिलित वर्ग बहुत कम लाये गये हैं। इनकी अनुप्रास का इष्ट न घा, परन्तु इनकी कविता में