पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९४

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रघुनाथ] ' उत्तरालंकृत भए । ७११ । रसिकमैहन तंत्र १७९६ में बना था। यह अलंकारों का प्रग्य है. जिसने १११ पृष्ठ मैर ३३ छन्द हैं। इसमें ऋगार रस फा विषय इतना अधिक नहीं है, जितना के अन्य प्रन्थों में धुआ करता है। उसमें अलंकारी के लक्षण और उदाहरण बड़े ही साफ़

  • । इस महकिब ने पद अन्य और इसके समस्त छन्द अलंकार

समझाने ही के लिए घायै, अतः जिस अलंका का उदाहरण दिया गया है, उसमें प्रायः एक ही छन्द्र में बहुत बार वही अलंकार निकलता है। यथा -- फूल उठे कमल से अमल हितू के नेन क रघुनाथ भरे चैन इस सियरे। रिः आयै भर से करत गुनी गुन गान सिद्ध से सुजान सुन्न सागर से नियरे । सुरभी खो जुन सुकवि की सुमति लागी चिरिया सी जाति चिन्ता जनक के थिरे । भनुष १ दादै राम रवि से दसत आद्ध भार कैसे नसत नरिन्द भप पियरे । इस ग्रन्थ में बदियः छन्द बहुत में हैं और कहाँ र इनके पद कविरा के रूप में परिंत हो गये हैं। पथा- में मन बीच चारि लम्यो हे बनारस में ॥ धना रस केॐ ॥ । छोर निधि झाप गायै नगर्न पुरान छाया ३पुप प्रभा में लीन्हें वन जगतु ।।