पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९६

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, उत्तराखंत प्रकरण ।

  • यह ३२४ पृष्ठों का एक बड़ा ग्रन्थ है, परन्तु इसमें श्रीकृष्ण-

चन्द्र की मेंबल १२. घटे की दिनभया वर्णित हैं। चन्दननै ने अन् गुणगान करके जगाया, उन्ने उठ वर देवता का ध्यान करणे मातकृत्य किया । इतने में पंडित लागे ने आशीर्वाद देकर राजनीति कही, तथा नैयायिक, ज्योति, सामुद्रिकश और वैद्य क्रमशः आये और उन्हों ने भी बढ़े बिस्तारपूर्वक अपने अपने विपी के वन किये । तब इमि में भाञ्चन घर के दरबार किया। यहाँ दरवारी, भुसाहेब, साज-सामान, सेना, जवाहिरात, घाई। के गुण-देव चार वैषध, हाथी, उनके भेद एवं दया, और विविध भाँति के पक्षियेां के तांगापम घन हैं। इसके पी यादबपति मृगया के निफळे | इस यान पर याइन, सेना, नगर, वन, पक्षी ५ मृगादि के अच्छे कथन हैं । मृगया में हाथ पकड़ने का पान हैं। तद्नन्तर मुनेगमा यादघय से मिले और उन्होंने अशीर्वाद । दैकर ब्राझीन फा फधन किया। इस कान पर पियां के आश्र फा भी धन हैं। ग्राम के साथ अन्य समाप्त है। गया है। इस ग्रन्थ में राजनीति अच्छी कही गई है । घने का वाय देखते सद् प्रा बहुत मांसनीय है, परन्तु फई माने पर अद्द काव्य लक्षण के बाहर हो गया है। इस कयन के दादरसत्पऊप वैयफ, पोलिप, म्याय आदि हैं, जो काव्य की दृष्टि से अरुचिकर ३ गये हैं, यद्यपि उनसे फच फ बहुना प्रकट होती है। इस न्य कै उदाहरणस्वरूप दी छन्द नीचे लिखें जाते हैं:- सुधरे, लिलाइ रारी, वायु मैगी याद रावै, रसद की राय रासे, नेि र वन पर । १९