पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०

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मिश्नबन्धुनाई है। [१० १९८५ दादर । मन से तन नाचा अति थी, ६६ पमान मानता है । सहन सुमाघ ३ का सा परि, रसना सदा फाइव दिये टुरि । गृप पृक्ष पर न दीजै, मट्टिा अर्थ में नर वारी । भाँग प यन में न हगाई, भोजन जल में अनर्पित पावे ॥ नाम-(२८१) ध्यास जी मैड़ाया। अन्ध-१} महावाग्दी ( १३५ पृष्ठ ), (२) पद (४८ पृष्ठ), (३) नोति फैः दाई, (४) संगमाळ, १५) पदावली ।। कविता-काल-१६८५ वृत्तान्त–निने छन्द इज़रा में मिलते हैं। मैं साधारण धेश के | कवि थे। इनके १९३ अन्य छपूर में मनै दे । इन इर: व्यास दैच भी कहते थे । ये निम्पार्क सम्प्रदाय के हैं। उदाहरण है। भगति दिन अगति जाडु में मीर। पेगि चेति हरि धरम सरन गहि घड़ि दिदै की भीर। कामिनि कनक देरि जनि भूले मन में घरिया धीर ॥ साधुन की सेवा कर सीजे व नियत पर । मानुस तन वैदित फरिया दरि गुन अनुकूल समार ॥ साम-२८८२) शीमराज चार आम खीमपुरा उदयपुर। अन्य फुटकर गीत कविता। कविता संयत्-६८५