पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०३

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मिश्रपन्टुवाद। [५० १६०० (७२६) स्वामी श्रीहित वृन्दावन दासजी चाची | | याचा जा ज्ञाति के झाझा थे। आप पुकर जी के समीपस्य श्रीस्वामी दितरूप जी ॐ शिष्य थे। इन अधियदाता महारा यहादुरसिह जी, महाराज नागदास राज्ञा प्यपद के छोटे भाई थे। आप ठत्कालीन गद्दाघर गैस्याम के पितृव्य होने के कारणं चाची कहलाने लगे। इन पद्दल घना जे में मिट्टी ई, घई सवत् १८०० ही है, से अनुमान से इनका जन्न सदद् १७७० के लग भग माना जा सका है। कहा जाता है कि इन्हें ने एक दक्ष पद तथा छन्द की रचना की। हमने इनके जितने ऋन्य दृरया छतरपुर में देने है, केवल उन्हीं में १८२४५ पद दादा नपाई इत्यादि ६। इनके अतिरिक्त इन मामा तुरा रचित और भी मन्ये का " होना इन्दो अन्य के देखने से जान पड़ता है। उपयुक कांता पर निगरद्द करने से फना पड़ता है कि कार में इनके घर रचना शायद सूरदास जी के सिवा और किसी ने भी नहीं की है, परन्तु सूरदासजी के भी पद इस समय साढे चार बहन से अधिक उपय नहीं हावै । काज्य-ौदता फे दिपय में भी इनकी कविता महारमा दित जी, पूरदास आदि के सिवा और प्रायः सभी पदरचयिता कवियों से मैं ऋतर है। चाचा जी ने अष्टयाम, समय प्रबन्यादि कई

  • वार सान स्थान पर लिके हैं। इन्हें प्रायः सभी अन्यों में झज्य

भगवान के भेजन, शयन, रास आदि के घन किये हैं और | ऋगार रस पर विशेप ध्यान रक्षा है। ऋगारी पाव घेने पर भी | आप पूवया निर्विकार थे । यद्द यात इनकी रचना सें मी प्रकट है।